कविता : कुछ सपने सजा लें

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पुष्पा परजिया 
चलो न मितरा कुछ सपने सजा लें, 
हम तुम एक नया जहां बना लें। 
आ जाओ न मितवा कभी डगर हमारी,  
तुमसे बतियाकर अपना मन बहला लें।
 
भर ले सांसो में महक खुशियों की, 
कुछ नाचे कुछ गाएं कुछ झूमें और खुशियां मना लें।  
मन की उमंगें संजोएं और एक अलख जगा लें।।
 

 
मिटा धरती से दुख-दर्द की पीड़ा,  
हर किसी के दामन को खुशियों से सजा लें।    
चलो न मितरा सोए को जगा लें,   
चलो न मितरा भूखों को खिला दें ।।
 
खा लें कसम कुछ ऐसी कि, 
हर आंख से दुख के आंसू मिटा दें। 
कर लें मन अपना सागर-सा 
जग की खाराश (क्षार) को खुद में समा लें।।
  
बुलंदियां हों हिमालय के जैसी हमारी,  
पर मानव के मन से रेगिस्तान को हटा दें। 
खुशियों के बीज बोकर इस,
नए वर्ष को और नया बना दें ।।
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