दहेज प्रताड़ना पर कविता : बेटियां होगी सुरक्षित

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एक अखबार में निविदा विज्ञापन 
दहेज के दानव के विनाश हेतु 
चाहिए एक बाण
ऐसी निविदा पढ़ने के बाद 
दिल को हुआ आराम।

 
वर्तमान परिदृश्य में 
बहुएं जली/जलाई जा रही 
ऐसे हादसों के कारण गावों के 
कुएं की चरखियां, घट्टीयों की आवाजें 
खत्म होती जा रही।
 
बाजारों में फ्रेमों के और कब्र के पत्थरों के 
दाम यकायक बढ़ते जा रहे 
सुने घर और आंचल में कैसे छुपे बच्चे 
छुपा-छाई का खेल वो खोते जा रहे 
रिश्तों में कड़वाहट/लालची युग का 
विष घुलता जा रहा।
 
लगने लगा जैसे दहेज के लालची 
दानवों का दायरा बढ़ता जा रहा 
बढ़ते हुए दायरों को न रोक पाने का 
कारण यह भी हो सकता है 
कलयुग में बाण चलाना आता नहीं 
या लोग डरपोक बन भागते जा रहे।
 
निविदा की तिथियां बढ़ती जा रही 
अब संशोधनों के साथ 
दहेज के दानवों के विनाश हेतु 
चाहिए अब तरकशों से भरे बाण
इंतजार है, कोई तो आएगा खरीदने 
तभी खत्म हो सकेगी 
दहेज के दानवों की विनाशलीला 
और बेटियां होंगी हर घरों में 
सुरक्षित ।
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