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जन्माष्टमी विशेष कविता : लालन आए
पुष्पा परजिया
काली अंधियारी रात भई, जब लालन आए अवनि में
आते ही दिखलाए प्रभाव अपने कान्हा ने
कंस मामा को सुलाए,
गए यशोदा घर पार कर यमुना कालिंदी
कान्हा के आने से ब्रज ने नन्द बाबा को बधाइयां दी
तूने कान्हा, भेज महामाया को कंस की नींद उड़ा ही दी
कुछ ही दिन के होकर तुमने अपनी लीलाएं रचा ही दी
यमलार्जुन को श्राप मुक्त कर, मोक्ष की राह बतला ही दी
असफल कर दी कंस की रचाई षडयंत्र की गोष्ठी
आई मासी बनकर पूतना, दिया जहर तुझको उसने पर
उसको भी मोक्ष मुक्ति दी
ग्वालन संग खेल-खेल में कान्हा कालिय मर्दन कर कालिंदी को मुक्ति दी
गौएं (गाय) चराकर, माखन चुराकर गोपियां संग तूने लीलाएं की
उखल से बंधकर समझाया जग को मां कितनी होती है अपनी
माटी खाकर गए यशोदा मां पहु तब दर्शन ब्रह्मांड का मुख में दिखाकर
मां को यह अनुभूति दी
भले हूं ब्रह्मांड नायक मां, मैं पर हूं तो तेरो लल्ला ही
राधा जी संग रास रचाकर सृष्टि को प्रेम की प्यारी सीख ही दी
संग सुदामा उदहारण दिया दोस्ती का और
द्रौपदी चिर बढ़ाकर महाभारत की आगाही दी
रुक्मनी संग ब्याह रचकर कान्हा, रुक्मी को तुमने मुक्ति दी
कंस को मारा, कौरव के त्रास से इस धरती को मुक्ति दी
पूर्ण पुरुषोत्तम हो ही कान्हा क्यूंकि जीवन के हर पल को
समझा था तुमने साथ दिया अपनों का पर
राधा संग न रहकर भी प्रेम की, सारे संसार को शिक्षा दी
आओ आ जाओ कान्हा, दिल से पुकारूं,बाट निहारूं
क्योंकि तुम थे तब तो एक कंस था, अब तो विश्व ही कंसों से भरा पड़ा
चीख रही है मानवता और मानव जीवन शांति से अलग हुआ
फैली है बर्बरता चहुं ओर इंसा खड़ा अब बिलख रहा
क्रूरता अन्याय के घर हैं अब तो सच्चाई और इंसा बेघर खड़ा
आजा कान्हा दर्श दिखा जा पापियों का नाश अब तू कर दे जरा
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