हिन्दी कविता : एक निवेदन

राकेशधर द्विवेदी
जीवन के अविराम समर में,
तुम आगे बढ़ते जाओ।


 
सूरज-चांद निहारे तुमको,
ऐसा गीत गाकर सुनाओ।
 
जीवन की कर्तव्य शिला पर,
‍अमिट शीतल चंदन बन जाओ।
विष भुजंग पास न आ पावे,
तुम निर्भय नेवल बन जाओ।
 
मधुर गान हो मधुर हो वाणी,
ऐसा गीत सुनाओ प्राणी।
बिना तेल के जो चल सके,
ऐसी तुम बन जाओ गाड़ी।
 
अजर-अमर शाश्वत चित्रों के,
तुम सुन्दर एलबम बन जाओ।
गरीब-निर्बल असहाय जनों के,
जीवन के संबल बन जाओ।

 
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