हिन्दी कविता : मेरे राम की चिंता

राकेशधर द्विवेदी
राम मेरे आज दु:खियारे हुए
क्योंकि जनता के मन में अंधियारे हुए
भाई, भाई का दुश्मन बना बैठा है
असत्य का दानव सजा बैठा है। 


 
वह त्रेता था जिसमें था लक्ष्मण-सा भाई
इस कलयुग में भाई भी दुश्मन बना बैठा है
लुटेरे, दुराचारी रखवाले बने बैठे हैं
जो कल तक थे जिलाबदर वे आज
न्याय देने वाले बने हैं। 
 
मन-मंदिर में रावण की प्रतिमा सजी है
सीता वर्षों से रोती, शबरी प्यासी खड़ी है
इस कलयुग की ये काली गाथा सुनो
राम के नयन आंसुओं से भीगे हुए हैं
राम मेरे आज दु:खियारे हुए हैं।
 
ये चिंता है आज राम को सताती
नरगिस भी अपनी बेनूरी पर रोती
जैसे वो धीरे से है कह जाती
हे राम! तुम फिर इस धरा पे आओ
जनता को कष्टों से मुक्त कराओ। 

 
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