काव्य-संसार : यह धरती कुछ कह रही है

राकेशधर द्विवेदी
यह धरती कुछ
कह रही है


 
इसकी बातों को
सुनने का प्रयास करो
इसे न अपनी आंखों
से नजरअंदाज करो
 
अपने गर्भ को चीरकर
इसने तुम्हें पाला-संवारा
जिंदगी के हर एक पल को
इसने तुम्हें दिया सहारा
 
किंतु तुम स्वार्थी मानव
उसके उपकार को न समझ पाए
नफरत, स्वार्थ, ईर्ष्या, द्वेष से न उबर पाए
 
न जाने कितने घाव
इसके शरीर पर किए
पर्वत तोड़े, पहाड़ तोड़े
न‍दी और झरने बंद किए
पेड़ काटे, फूल उजाड़े
 
हर तरफ इसे बर्बाद किया
इसके सुंदर स्वरूप का
तुमने सत्यानाश किया
 
इसकी इस दशा पर तारे भी
आंसू बहाते हैं
ओंस की बूंदों के रूप में
वो धरती पर छा जाते हैं
 
कभी तुम्हारी भयानक हरकतों से
वह अपनी करवट बदलती है
भूकम्प-ज्वालामुखी के रूप में
यह तांडव कर देती है
 
तुम्हें चेताने के लिए
सुनामी हवाएं आती हैं
सृष्टि से छेड़छाड़ की
भयानक परिणाम की
जानकारी दे जाती है
 
तो हे मानव! अब तुम
धरती की आवाज सुनो
तुम इसका न तिरस्कार करो
इस मां को तुम प्रणाम करो
इस मां को तुम सलाम करो
 
 
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