किसान आंदोलन पर कविता : एक शाश्वत टीस

डॉ. रामकृष्ण सिंगी
डॉ.रामकृष्ण सिंगी 
 
टैंकरों से बहा जब सड़कों पर दूध,
वेदना से भर गया मन, आंखें डबडबा गईं। 
छा गई हर एक दिल में एक अबोली खिन्नता,
हमारी बेबसी पर हजार लानतें बरसा गई।।1।।
 
 
जो बह रहा था सड़कों पर, 
वह निरीह पशुओं से निचोड़ा रस था। 
माता के दूध के बाद, प्रकृति का दिया हुआ अमृत,
शिव जटा / विष्णु चरण से गंगा सा छोड़ा रस था ।। 2 ।।
 
कारण जो भी रहा हो उसके पीछे,
पर उसकी यों परिणति बहुत दुखद थी। 
हाय-हाय कर उठा था हर हृदय,
हर आत्मा भी दुखी बेहद थी  ।।3।।
 
अब जब भी याद आएंगे वे दृश्य फिर,
उस क्षणिक निर्मम नादानी की याद दिलाएंगे। 
हम मन ही मन कोसते रहेंगे अपनी कायर सभ्यता को। 
पछतावे की शाश्वत टीस से शायद ही उबर पाएंगे ।। 4 ।।
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