कविता : फूल कांटे

Webdunia
- आशुतोष सिंह
 
चेहरे के पीछे छुपा एक चेहरा
घाव करें वही बस गहरा
फूल नहीं बस कांटे दे दो।
याद रहे बस असली है।
 
गर्दन मैं भले कटा लूंगा
पर झूठ कभी ना बोलूंगा
दु:ख जाएं कितना भी
सिर झुक जाए कितना भी
फूल नहीं बस कांटे दे दो।
याद रहे बस असली है।
 
तलवार भले जख्म देती है,
बोली दल पे वार कर।
दवा लगा जख्म भर जाएं
पर दल का घाव यूं ही रह जाए।
फूल नहीं बस कांटे दे दो।
याद रहे बस असली है।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

ब्लड प्रेशर कंट्रोल करने में मददगार हैं आसानी से मिलने वाले ये 9 आयुर्वेदिक हर्ब्स

‘कामसूत्र’ की धरती भारत में ‘सहवास’ पर इतना संकोच क्‍यों?

रथ यात्रा पर निबंध: आस्था, एकता और अध्यात्म का भव्य संगम, जगन्नाथ रथ यात्रा में क्या है इस साल खास?

कद्दू के बीज ज्यादा खाना पड़ सकता है भारी, जानिए कितनी मात्रा में खाने से होता है फायदा

कैसे बनाते हैं भगवान जगन्नाथ का खिचड़ी भोग, यहां पढ़ें सात्विक रेसिपी

सभी देखें

नवीनतम

हार्ट अटैक से एक महीने पहले बॉडी देती है ये 7 सिग्नल, कहीं आप तो नहीं कर रहे अनदेखा?

क्या महिलाओं में कार्डियक अरेस्ट है ज्यादा घातक? शेफाली जरीवाला डेथ केस से मिल रहे संकेत

दुनिया के जाने-माने लोगों ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के बारे में क्या कहा, पढ़ें 10 अनसुने कथन

बाजार में कितने रुपए का मिलता है ब्लैक वॉटर? क्या हर व्यक्ति पी सकता है ये पानी?

बालों और त्वचा के लिए अमृत है आंवला, जानिए सेवन का सही तरीका

अगला लेख