अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस पर कविता : पर्वतराज हिमालय

श्रीमती इन्दु पाराशर
वह अटल खड़ा है उत्तर में, 
शिखरों पर उसके, हिम किरीट।
साक्षी, विनाश निर्माणों का,
उसने सब देखी, हार-जीत।
 
उसके सन्मुख जाने कितने,
इतिहास यहां पर रचे गए।
जाने कितने, आगे आए,
कितने अतीत में चले गए। 
 
उसके उर की विशालता से,
गंगा की धार निकलती है।
जो शस्य-श्यामला धरती में,
ऊर्जा, नव-जीवन भरती है।
 
इसकी उपत्यकाएं सुंदर,
फूलों से लदी घाटियां हैं।
औ‍षधियों की होती खेती,
केशर से भरी क्यारियां हैं।
 
कंचनजंघा, कैलाश शिखर,
देवत्व यहां पर, रहा बिखर।
ऋषियों-मुनियों का आलय है,
यह पर्वतराज हिमालय है।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

दादी-नानी की भोजन की ये 8 आदतें सेहत के लिए हैं बहुत लाभकारी

ये है सनबर्न का अचूक आयुर्वेदिक इलाज

गर्मियों में ट्राई करें ये 5 लिपस्टिक शेड्स, हर इंडियन स्किन टोन पर लगेंगे खूबसूरत

गर्मियों में हाथों को खूबसूरत बनाएंगे ये 5 तरह के नेल आर्ट

आखिर भारत कैसे बना धार्मिक अल्पसंख्यकों का सुरक्षित ठिकाना

कैसे बनाएं बीटरूट का स्वादिष्ट चीला, नोट करें रेसिपी

पीरियड्स से 1 हफ्ते पहले डाइट में शामिल करें ये हेल्दी फूड, मुश्किल दिनों से मिलेगी राहत

घर में बनाएं केमिकल फ्री ब्लश

बच्चे के शरीर में है पोषक तत्वों की कमी अपनाएं ये 3 टिप्स

सुकून की नींद लेने के लिए कपल्‍स अपना रहे हैं स्‍लीप डिवोर्स ट्रेंड

अगला लेख