काव्य संसार : कंक्रीट के जंगल

राकेशधर द्विवेदी
आइए मैं ले चलूं आपको
कंक्रीट के जंगल में
जहां आप महसूस करेंगे
भौतिकता के ताप को
 

 
 
 
मानवता नैतिकता दया-करुणा
यहां बैठे हो रहे मानवीय मूल्यों के
अवमूल्यन की कहानी कुछ कर रहे
मैक्डॉवेल की बोतल में
मनीप्लांट है मुस्करा रहा
पास में खड़ा हुआ
नीम का पेड़ काटा जा रहा 
 
ताजी हवा का झोंका
यहां है सिमटा जा रहा
पास में खड़ा हुआ
एयर कंडीशनर गुर्रा रहा
है हवेली बड़ी सी
पर मगर वीरान है
बूढ़े-बूढ़ियों को सासों से
यह केवल आबाद है
 
आगंतुक ने मालिक से पूछा
पड़ोसी का क्या नाम है
वह झल्लाया फिर बुदबुदाया
मेरा उनसे क्या काम है
इस अनोखे जंगल में
प्राणवायु है केवल मनी
यदि मनी है तो सब कुछ
है यहां फनी-फनी।

 
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