किसान आंदोलन पर कविता : क्या वो किसान थे..

सुशील कुमार शर्मा
वर्तमान हिंसक किसान आंदोलन पर कविता 
 
हिंसा को भड़काने वाले 
ये किसान नहीं हो सकते।
जीवन को सुलगाने वाले 
ये किसान नहीं हो सकते।
 
खेतों में जो श्रम का पानी देता है।
फसलों को जो खून की सानी देता है।
फसलों को आग लगाने वाले 
ये किसान नहीं हो सकते।
हिंसा को भड़काने वाले 
ये किसान नहीं हो सकते।
 
खुद भूखा रहकर जो औरों को भोजन देता है।
खुद को कष्ट में डाल दूसरों को जीवन देता है।
सड़कों पर दूध बहाने वाले 
ये किसान नहीं हो सकते।
हिंसा को भड़काने वाले 
ये किसान नहीं हो सकते।
 
कर्ज में डूबे उस किसान की क्या हिम्मत है।
घुट घुट कर मर जाना उसकी किस्मत है।
बच्चों पर पत्थर बरसाने 
वाले ये किसान नहीं हो सकते।
हिंसा को भड़काने वाले 
ये किसान नहीं हो सकते।
 
राजनीति की चौपालों पर लाशें है।
इक्का बेगम और गुलाम की तांशें हैं।
लाशों के सौदागर दिखते 
ये किसान नहीं हो सकते।
हिंसा को भड़काने वाले 
ये किसान नहीं हो सकते।
 
सीने पर जिसने गोली खाई निर्दोष था वो।
षडयंत्रो का शिकार जन आक्रोश था वो।
राजनीति के काले चेहरे 
ये किसान नहीं हो सकते।
हिंसा को भड़काने वाले 
ये किसान नहीं हो सकते। 
 
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