सच्चाई से रूबरू कराती हिन्दी कविता : सवाल

Webdunia
- दिनेश कुमार 'डीजे' 




 









काम किए बिना खुदा से कुछ भी मांग लेना,
गर यही है बंदगी तो फिर बंदगी क्या है?
 
जिंदगी के मकसद भूल यूं किसी के पीछे दौड़ना,
गर यही है आशिकी तो फिर आशिकी क्या है?
 
अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाइयां,
गर यही है तरक्की तो फिर तरक्की क्या है?
 
इंसानियत अंधेरे में और दौलत का उजाला,
गर यही है रोशनी तो फिर रोशनी क्या है?
 
तारीफ, वाहवाही, व्याकरण में सिमट के रह जाए,
गर यही है लेखनी तो फिर लेखनी क्या है?
 
मेरी जात, मेरी कौम, मेरी कार और मेरा मकान,
गर यही है जिंदगी तो फिर जिंदगी क्या है?
 
 
 
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