मणिपुर की घटना पर हिन्दी कविता : ओ बेशर्म दरिंदे

डॉ. छाया मंगल मिश्र
ओ बेशर्म दरिंदे 
तुमने  
देह के दर्शन कर लिए हैं 
दानवी वृत्ति ने 
खुश कर दिया हो तो 
सुनाना दहलाने वाली कहानियां 
उस परेड की 
अपने घर की स्त्रियों को 
तुम्हें पता है 
दहशत में रात भर सो नहीं रही हैं  
तुम्हारी भी स्त्रियां... 
दिमाग को परे रखकर 
सोचना दिल से कि 
वो स्त्रियां 
तुम्हारी अपनी नहीं थी.. 
तो तुम्हारी स्त्रियां उनकी नहीं होंगी 
चलता रहेगा यह सिलसिला 
यही होता आया है 
उनकी औरतें, हमारी औरतें 
उनके बच्चे, हमारे बच्चे 
उनकी मांएं, हमारी मां 
 
आंखें खोल कर परेड देखने वालों 
मैतेई और कुकी को भूल कर 
याद करो बस एक स्त्री को 
जो जन्म भी देती है 
घर भी देती है 
छांव भी देती है...  
 
तुमने कर लिया हो अपना काम 
पा लिया हो चैन तो 
फिर से उधेड़ना 
उसका शरीर 
शायद पहुंच जाओ आत्मा तक 
देह के भीतर वही तो रोशन है... 
शायद कोई उजाला तुम्हारी आंखों को भी चौंधिया दे.. 
देह के भीतर 
कितना घायल हुआ है मन 
दूषित हुआ है दिल 
आहत हुई है आत्मा.... 
 
मैतेई और कुकी 
दोनों जात सुनों 
एक ही जात बची है औरत की 
और आज वह पूरी जात 
तुम्हारी जात को गाली दे रही है... 
भुगतोगे एक दिन 
तुम पुरुष जा‍त....  
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