कविता : तुम्हारे तट पर.…

Webdunia
अविनाश बागडे
नदी तुम्हारे तट पर जाने कितने नगर बसे होंगे, 
नदी तुम्हारे तट पर जाने कितने नगर नए होंगे 
साथ समय के नदी तुम्हारी धारा कितनी बार मुड़ी
नदी तुम्हारे तट पर जाने कितने नगर बहे होंगे 
 
नदी तुम्हारे तट पर जाने कितनों ने जीवन पाया 
नदी तुम्हारे तट पर जाने कितनों को ही भरमाया 
लिए समय की रेत मुट्ठियां खाली-खाली दिखती हैं  
नदी तुम्हारे तट पर जाने कितनों ने रीता पाया 
 
नदी तुम्हारे तट ये जाने कितनी-कितनी बार कटे 
नदी तुम्हारे तट ये जाने कितनी-कितनी बार घटे
नदी तुम्हारी धाराएं भी साथ समय के लुप्त हुई 
नदी तुम्हारे तट ये जाने कितनी-कितनी बार पटे 
 
नदी तुम्हारे तट पर अब तो मेले नहीं नजारों के 
नदी तुम्हारे तट पर अब ना खिलते फूल बहारों के 
गगन चूमती इमारतों ने अब तो पैर पसारे हैं 
नदी तुम्हारे तट पर अब तो कौव्वे हैं बाजारों के  
Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

रोम-रोम में राम बसे, भक्ति में डूबे इन शुभकामना संदेशों को भेज कर मनाएं राम जन्मोत्सव

अपने भीतर के राम को पहचानिए! गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर

इन लोगों के लिए वरदान है कुट्टू का आटा, ग्लूटेन-फ्री होने के साथ और भी हैं कई फायदे

क्या गर्मियों में गुड़ खाने से सेहत को होता है नुकसान, डाइट में शामिल करने से पहले जान लें

गर्मियों में अमृत के समान है गोंद कतीरा का सेवन, जानिए क्या हैं फायदे

सभी देखें

नवीनतम

नारियल पानी के साथ मिलाकर पीजिए ये चीजें, मिलेंगे दोगुने फायदे

गर्मी में वैक्सिंग के बाद निकल आते हैं दाने, राहत दिलाएंगे ये नुस्खे

क्या पीरियड्स के दौरान कच्चे आम खाने से होता है नुकसान, जानिए सच्चाई

गैरजरूरी को तोड़ना और जरूरी को बचा लेने का प्रयास बताती है किताब विहान की आहट

वर्ल्ड हेल्थ डे 2025: अपनों को भेजें सेहत से जुड़े ये खास कोट्स, स्लोगन और शुभकामना संदेश

अगला लेख