हिन्दी कविता : जय श्रीराम

राकेशधर द्विवेदी
जय जय श्रीराम, जय जय प्रभु राम
मेरे मन में बसे हैं श्रीराम
मेरे रोम-रोम में बसे हैं श्री प्रभु राम
राम जी महान, उनकी करनी महान
जो गावे उनके गुणगान करे भवसागर पार
मेरे मन में बसे हैं श्रीराम
मेरे रोम-रोम में बसे हैं प्रभु राम
शबरी के जो जूठे बेर खाते कहलाते श्रीराम
अहिल्या को जो कष्टों से उबारे वे हैं प्रभु राम
जिनके जन्म से सरजू भई हैं निहाल
दशरथ के नंदन कहलाते श्रीराम
कौशल्या के सुत जानकी नाथ है श्रीराम
दीन दुःखियों और अनाथों के नाथ है प्रभु राम
कष्टों से निजात दिलाते हैं श्रीराम
हम सबके पालनहार है श्री प्रभु राम
तो आए हम सब करें जय जय श्रीराम
जय जय श्री राम जय जय प्रभु राम।

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