हिन्दी कविता :बच्चा और युद्ध

सुबोध श्रीवास्तव
चारों तरफ छिड़ी हुई है
जंग/तबाह हो रहे हैं
शहर-दर-शहर
मारे जा रहे हैं अनगिनत
बेकसूर नागरिक।
घरों में कैद हैं/डरे-सहमे लोग
खिड़कियों से झांक रहा है
बच्चा/देख रहा है
कोहराम मचाते 
बम-मिसाइलों को
वह नहीं जानता कि
आखिर, क्यों हो रहा है युद्ध?
डरा-सहमा बच्चा
मां-बाप से जिद करता है
बारी-बारी कि रोक दो
ये सारा विध्वंस,
क्योंकि वह दुनिया में 
सबसे ताकतवर समझता है
मां-बाप को-
उम्मीद है उसे/वे रुकवा सकते हैं
युद्ध/जैसे रोक देते हैं
आसानी से घर के झगड़े
कर लेते हैं हल
बड़ी से बड़ी समस्याएं,
बच्चे की बार-बार जिद पर
लाचारी से खामोश हैं
मां-बाप/नम हो जाती हैं
उनकी आंखें
कैसे बताएं वे बच्चे को कि
धरती के तथाकथित
'ईश्वरों' के बीच है युद्ध
जो नहीं समझते
प्यार-मानवता की भाषा,
वह जानते हैं तो सिर्फ और सिर्फ
ताकत की भाषा
चाहते हैं सिर्फ-
वर्चस्व, विस्तार और प्रभुत्व!

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