हिन्दी कविता : करो अपने मन की

रीमा दीवान चड्ढा
किसको है यहां अनुमति
किसको है यह आदेश
किसके है भला वश में 
किसकी है यह ज़िम्मेदारी
किसका है यह हक
किसकी है ये ज़िद
किसके लिए है ज़रूरी
किसको कहा गया है कभी
किसके लिए ये तय है
नहीं....
नहीं...
नहीं.....
किसी के लिए 
कभी भी नहीं 
कहा किसी ने
हां....
बहुत सही है
सचमुच यही सही है
करो तुम अपने मन की..........

 
हां करो कुछ ऐसा अपने मन का
अपनी पसंद का 
अपने सुख के लिए
अपने सृजन के लिए
क्यों......????
क्योंकि
अगर तुम होगे सुखी
संतुष्ट.....
तभी तो दे पाओगे.....
और बेहतर
अपने आप को
दूसरों के लिए....
घर-परिवार-समाज-देश
दुनिया के लिए........
करो .....अपने मन की 
अपने ही मन की
कभी कभी
कभी कहीं
यहीं......यूं ही....करो तो.......
अपने मन की.....
हां....
अपने मन की.........
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