व्यंग्य कविता : हमारा जीवन तो व्यर्थ गया...!

डॉ. रामकृष्ण सिंगी
हमने न कभी लिया परीक्षा में नकल करने का मजा,
हमने न कभी दी न कभी ली रिश्वत।
हमने न कभी दौड़ाई बाइक भीड़भरी सड़कों पर,
हमने न कभी आजमाई क्रिकेट सट्टे में अपनी किस्मत।। 
 
...हमारा जीवन तो व्यर्थ गया।।1।।
 
हमने न किया नशा कोई,
कभी भी न खेला कोई जुए का खेल।
हमने न की कभी ताक-झांक कहीं,
जो मिल गई पत्नी उसे अब तक रहे हैं झेल।।
 
...हमारा जीवन तो व्यर्थ गया।।2।।
 
हमने न दिया झांसा कभी किसी को,
न इतने विज्ञापनों के झांसे में आए हम।
हमने न खरीदा हनुमान चालीसा लॉकेट,
न वह जादुई मालिश तेल, भले घुटनों से लड़खड़ाए हम।।
 
...हमारा जीवन तो व्यर्थ गया।।3।।
 
हम न ले पाए कोई झूठा मेडीक्लेम,
न अपनी जेब काली कमाई से भर पाए हम।
हम तो बंधे रहे सदा नियमों, कानूनों में,
कभी किसी मर्यादा का उल्लंघन न कर पाए हम।।
 
...हमारा जीवन तो व्यर्थ गया।।4।।
 
सच पूछिए तो ऊपर गिनाए गए शगल सब,
जीवन के चटकारे हैं, थ्रिलभरे उपक्रम हैं।
जो रहे इनसे अछूते सिद्धांत ओढ़कर या डरकर,
उनके जीवन रसहीन हैं, सपाट हैं, बेदम हैं।
 
हां, हमारा जीवन भी यों ही रहा,
और यह भी सच है कि जो भी चला इन अटपटी राहों पर। 
उसके जीवन की मशाल में एक बार तो भभक प्रकाश हुआ,
पर आखिरकार बुराई का अंत बुराई होकर,
पहले भले उछाल मिली, अंतत: सर्वनाश हुआ।
 
सच पूछिए तो बच गए हम...। 
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