प्रेम कविता : कागा नित दरवाजे पर मेरे...

शम्भू नाथ
कागा नित दरवाजे पर मेरे, 
कांव-कांव जब करता है।


 

आते होंगे प्रीतम मेरे, 
मन उमंगें भरता है।।
 
सज-धज मैं राह निहारूं, 
हो जाती है शाम। 
काम-काज में मन नहीं लगता, 
न झांव, न घाम।।
 
बीते पल को सोच-सोचकर, 
सूरज यूं ढलता है। 
 
फोन की घंटी जब बजती है, 
दौड़ लगा के जाती हूं। 
आवाज सुनाती और किसी की, 
रोती-रोती आती हूं।।
 
आशा का दीपक मन में मेरे,
रात-दिन यूं जलता है।
 
सासु, जेठानी, ननद, देवरानी, 
सब कोई मारे ताना।
ससुर हमारे गुस्से में कहते, 
जल्द बनाओ खाना।।
 
विरह में उनके पागल हो गई,
दिल मिलने को करता है। 

 
Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

वर्ल्ड म्यूजिक डे 2025 : संगीत का साथ मेंटल हेल्थ के लिए इन 7 तरीकों से है फायदेमंद

21 जून योग दिवस 2025: सूर्य नमस्कार करने की 12 स्टेप और 12 फायदे

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस: 30 की उम्र तक हर महिला को शुरू कर देना चाहिए ये 5 योग अभ्यास

21 जून: अंतरराष्ट्रीय योग एवं संगीत दिवस, जानें इसकी 3 खास बातें

क्यों पुंगनूर गाय पालना पसंद कर रहे हैं लोग? जानिए वैदिक काल की इस अद्भुत गाय की विशेषताएं

सभी देखें

नवीनतम

थायराइड के लिए सबसे असरदार हैं ये 3 योगासन, जानिए कैसे करें

हर यंगस्टर को रोज करना चाहिए ये 5 योगासन

भारत के किस राज्य में कितनी है मुसलमानों की हिस्सेदारी, जानिए सबसे ज्यादा और सबसे कम मुस्लिम आबादी वाले राज्य

पीसफुल लाइफ जीना चाहते हैं तो दिमाग को शांत रखने से करें शुरुआत, रोज अपनाएं ये 6 सबसे इजी आदतें

योग दिवस 21 जून को ही क्यों मनाया जाता है, जानें कारण और इसका महत्व