कबीर की रचना : मन की महिमा

Webdunia
कबीर मन तो एक है, भावै तहां लगाव।
भावै गुरु की भक्ति करूं, भावै विषय कमाव।।
 
मन के मते न चलिए, मन के मते अनेक।
जो मन पर असवार है, सो साधु कोई एक।।
 
मन के मारे बन गए, बन तजि बस्ती माहिं।
कहैं कबीर क्या कीजिए, यह मन ठहरै नाहिं।।
 
मनुवा को पंछी भया, उड़ि के चला अकास।
ऊपर ही ते गिरि पड़ा, मन माया के पास।।
 
मन पंछी तब लग उड़ै, विषय वासना माहिं।
ज्ञान बाज के झपट में, तब लगि आवै नाहिं।।
 
मनवा तो फूला फिरै, कहै जो करूं धरम।
कोटि करम सिर पै चढ़े, चेति न देखे मरम।।
Show comments

गर्भवती महिलाओं को क्यों नहीं खाना चाहिए बैंगन? जानिए क्या कहता है आयुर्वेद

हल्दी वाला दूध या इसका पानी, क्या पीना है ज्यादा फायदेमंद?

ज़रा में फूल जाती है सांस? डाइट में शामिल ये 5 हेल्दी फूड

गर्मियों में तरबूज या खरबूजा क्या खाना है ज्यादा फायदेमंद?

पीरियड्स से 1 हफ्ते पहले डाइट में शामिल करें ये हेल्दी फूड, मुश्किल दिनों से मिलेगी राहत

जर्मन मीडिया को भारतीय मुसलमान प्रिय हैं, जर्मन मुसलमान अप्रिय

Metamorphosis: फ्रांत्स काफ़्का पूरा नाम है, लेकिन मुझे काफ़्का ही पूरा लगता है.

21 मई : राजीव गांधी की पुण्यतिथि, जानें रोचक तथ्य

अपनी मैरिड लाइफ को बेहतर बनाने के लिए रोज करें ये 5 योगासन

क्या है Male Pattern Baldness? कहीं आप तो नहीं हो रहे इसके शिकार