आखिर खुदकुशी करते हैं क्यों ?

Webdunia
- रवि श्रीवास्तव


 
आखिर खुदकुशी करते हैं क्यों ?
जिंदगी जीने से डरते हैं क्यों ?
फंदे पर लटककर झूले
जीवन है अनमोल ये भूले।
अपनों को देकर तो आंसू,
छोड़ दिए दुनिया में अकेले।
कभी ट्रेन के आगे आना,
कभी जहर को लेकर खाना।
कभी मॉल से छलांग लगा दी,
देते हैं वो खुद को आजादी।
इस आजादी के खातिर वो,
अपनों को देते तकलीफ
लोग हसंते ऐसी करतूतों पर,
करते नहीं हैं वो तारीफ।
पिता के दिल का हाल ना पूछो,
माता पर गुजरी है क्या
इक छोटी-सी कठिनाई के खातिर,
क्यों कदम इतना बड़ा लिया उठा।
पुलिस आई है घर पर तेरे,
कर रही सबको परेशान,
खुद चला गया दुनिया से,
अपनों को किया परेशान।
संतुष्टि मिल गई है तुमको
अपनी जान तो देकर के,
हाल बुरा है उनका देखो,
बड़ा किया जिसने पाल-पोसकर के।
जिंदगी की सच्चाई में क्यों?
इतना जल्दी हार गए।
आखिर मजबूरी है क्या?
दुनिया के उस पार गए।
याद नहीं आई अपनों की,
करते हुए तो ऐसा काम,
क्या बीतेगी सोचते अगर,
नहीं देते इसको अंजाम।
दुख का छाया, क्या है अकेले तुम पर
जो हो गए इतना मजबूर 
औरों के दुख को भी देखो,
जख्म बन गए हैं नासूर।
हर समस्या का कभी तो,
समाधान भी निकलेगा।
ऊपर बैठा देख रहा जो,
उसका दिल भी पिघलेगा।
बुजदिली कहें इसे,
या कायरता कहकर पुकारें,
छोड़ रहे दुनिया को क्यों ?
और भी हैं जीने के सहारे।
कठिनाइयों से डरते हैं क्यों?
आखिर खुदकुशी करते हैं क्यों ?
 
 
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