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हिन्दी कविता : सुख-दु:ख
सुशील कुमार शर्मा
छंद- दोहा
सुख-दु:ख सदा न जानिए, जीवन के हैं अंग।
सुख में मन हर्षित रहे, दु:ख में सब बदरंग।।
सुख वैभव क्षणमात्र हैं, रहें न सबके पास।
सपने जैसा छूटता, खुली आंख की आस।।
सुख-दु:ख मन के फेर हैं, इन्द्रधनुष-से रंग।
एक पल सुख के साथ है, एक पल दु:ख के संग।।
आग तपे कुंदन बने, दु:ख जीवन की आन।
दु:ख से मन निर्भय बने, कर शत्रु-मित्र पहचान।।
सुख सपना-सा जानिए, दु:ख का नहीं जवाब।
जब दोनों मन में रहें, जीवन बने गुलाब।।
मिलन-बिछोह
छंद- चौपाई, सोरठा
जीवन मिलन-बिछोह किनारे। उर आनंद मगन मन सारे।
चिरगतिमय जीवन संसारा। प्रणय अटल तन-मन सब वारा।।
तन विछोह मन विसरत नाहीं। पिया दरस बिन अब सुख नाहीं।
विरह अनल धधकत मन ऐसे। वन सुलगत दावानल जैसे।
आतुर नयन अश्रु ढलकाई। पिय विछोह अब सहा न जाई।
जल बिन मीन तड़फती कैसी। मन की गति पिय बिन है ऐसी।
तन-मन मिलन हृदय सुखदायी। तप्त धरा जिमी बरसा पायी।
आतुर मन पिया संग झूमे। जैसे भ्रमर पुष्प को चूमे।
मिलन विछोह जगत की माया। जीवन में रहते हमसाया।
विरह-वेदना दर्द जगाता। मिलन मधुरतम सुख बरसाता।
सोरठा-
प्रेम मिलन की आस, ईश्वर बिन मिले न चैन।
आशा संग विश्वास, दीनन ओर विलोक मन।।
आना-जाना
छंद- दोहा
जीवन आना जगत में, मौत विदा की रात।
आना-जाना नित्य है, ज्यों संध्या-परभात।
जीव मृत्यु बंधन अटल, ज्यों पतंग की डोर।
एक सिरा जीवन बंधा, मृत्यु दूसरी छोर।
कालचक्र की गति अगम, जानत नहीं सब कोय।
निर्विकार घूमत सदा, जनम-मरण संजोय।
जनम-मरण आभास हैं, सतत रहें गतिमान।
एक समय संग दौड़ना, एक शांति प्रतिमान।
जीवन अविरल चेतना, गतिधारण आवेग।
मौत गहन निद्रा सरिस, प्राणरहित संवेग।
सद्गुरु मील का चिन्ह है, आगे पंथ अनेक।
आवागमन मिटाय के, जो दे ज्ञान विवेक।
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