आज फिर...।

फाल्गुनी

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आज फिर मिल पाए ना हम
आज फिर आँखें रही नम
नीम पत्तियों ने इंतजार का
घोला मुझमें शहद
आज फिर उदास रहा बरगद।

आज फिर पीली पड़ी
मनीप्लांट की बेल
आज फिर गुलाबी हुए
मेरे मन के खेल
साँझ घिरे बादलों ने
बरसाए कितने मोती,
दामन न सका झेल
आज फिर दो दिलों का
हो न सका मेल।

आज फिर रूपहली रात
दे ना सकी साथ,
आज फिर
कच्ची डोर से बँध ना सके हाथ
गीले चाँद ने सारे आँसू
पोंछे एक साथ
आज फिर ‍खिलती रही
मन में एक मीठी बात।

आज फिर तोड़ा किस‍ी ने
मेरा दिल नादान
आज फिर समझा किस‍ी ने
यूँ ही आवारा यह जान
आज फिर रही अकेली
सहलाती रही झूठा सम्मान
आज फिर चाहा अंत कर दूँ
अपने बोझिल प्राण।
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