तुम भी देखोगे जो आईने में

रोहित जैन

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दिल जो टूटा तो बताओ के किधर जाओगे
तुम भी इस राह में आखिर को बिखर जाओगे

हद से हद ये ही मिलेगा मुझे चाहत का सिला
तुम भी दो फूल मेरी लाश पे धर जाओगे

आज तक कश्तियाँ ड़ूबी हैं मोहब्बत में सभी
तुम कोई ख़ास हो जो पार उतर जाओगे

कौन रुकता है यहाँ घर कोई जलता हो जले
तुम भी आओगे और चुपचाप गुज़र जाओगे

तुम भी औरों की तरह जीते रहोगे यूँ ही
तुम भी औरों की तरह एक दिन मर जाओगे

रुखेहैरान परेशान और ये ज़र्द-लिबास
तुम भी देखोगे जो आईने में डर जाओगे

न यहाँ कोई मसीहा न कोई पैग़म्बर
तुम भी इनसान ही पाओगे जिधर जाओगे

कितने आए गए क्या-क्या किया, फ़रक़ क्या है
तुम भी ‘रोहित’ जो जलोगे तो सुधर जाओगे ।

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