संस्कारों की परखनली मे ं हो जाएगी मुक्ति
पल्लवित होगा वंश वृक्ष
मिल जाएंगे कंधे
महाप्रयाण में
सदियों का विश्वास
घना है
संस्कारों की परखनली में।
आतुर है जानने को
लक्ष्मी का लालच दे
भ्रूण के लक्षण को
भविष्यफल की तरह
सोनोग्राफी में।
जैसे सिक्का उछलने पर
बिन खेले ही
हो जाता होगा
जीवन-विकेटों का निर्णय।
लटक जाते हैं चेहरे
पता चलते ही
लगता है जैसे कन्या के आते ही
घट जाएगा
जीवन का दु:खान्त।
यों कन्या-पूजन में
लक्ष्मी से
पा जाते हैं सुखान्त।
घने अवसादों में
कहां सुन पाते हैं
उस वाणी को
जो कंस के हाथों से उछलकर
कर गई थी शक्तिपात
थर्रा गया था
सत्ता का आकाश
उस वाणी से।
शक्ति की पूजा में
कहां होता है बोध
कि
हार जाते हैं
देवता सारे
तो शक्ति ही
फेंकती है पाशुपत को
त्रिपुर वध के लिए।
सदियों के विश्वासों में
मुक्ति के सपने हैं
जैसे हर बेटा
उठा लेगा गोवर्धन
नाथेगा कालिया को।
कैसा लगता होगा
उस बेटे को
पता चलता है
पिता है कंस
बहिन का हत्यारा
रहस्य की परतें
अनखुली भी रह जाएं
तब भी टूट जाता है मिथ
जब पंखों में गति आते ही
उड़ जाता है युगल
अपने घर से अपार्टमेंट में
पीले हाथों की खुशियां
कितनी पीली पड़ जाती हैं
पसर जाता है सूनापन
सपनों का रेतीलापन
लटक जाता है ताले की तरह
उम्र के चौथेपन में।
उस सूनेपन में
आती है बेटी
नाती-नातिन की हरी डालियां
संग लिए
झुर्रियों में भरती खुशियां
जैसे कहती हों
डाली हैं हम इसी पेड़ की
खिले चाहे भाई या बहन
पेड़ कहां करवाते हैं सोनोग्राफी
बस इनका खिलना ही है काफी।