लड़की एक गोरी थी

मनोज सोनकर

Webdunia
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लड़की एक गोरी थी

मति की न भोली थी

आँखें सुरमा धारी थीं

लगती वे प्यारी थीं।

मीठा कम बोलती थी

साथ लिए डोलती थी

सागर उसे प्यारा था

बड़ा ही दुलारा था।

तर्क तेज करती थी

जरा नहीं डरती थी।

ईनाम कईं पाई थी

दर्प भी जताई थी।

क्रिकेट तो राजा था

मनपसंद बाजा था

जीत बड़ी भाती थी

हार रुला जाती थी।

पीला रंग प्यारा था

नज़रों का तारा था।

हरा कमती भाता था

नीले से न नाता था।

फिल्में उसे भाती थी

बड़ी ही लुभाती थीं

वादे नहीं करती थी

गालिब पर मरती थी।

बरखा उसे भाती थी

खींच-खींच लाती थी।

दुपट्टा उसका गीला था

ओंठ तो रसीला था।

अब न वह यहाँ है

जाने वह कहाँ है

यादें अब भी आती है

रंग थमा जाती हैं ।


( उक्त कविता अंग्रेजी के चतुष्पदीय तुकांत छंद बैलेड पर आधारित है। यह कथ्यात्मक कविता है।)
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