हिंदी कहानी: गौ-तश्करी

कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल
शेखर शहर से बाहर किसी बगीचे में बैठा हुआ आज सोच रहा है कि वह कोई कहानी लिखेगा। इसीलिए वह एकांत में आकर वृक्षों की छांव में बैठ गया, उसे अब किसी भी बात की चिंता नहीं रह गई है, उन्मुक्त और किरदारों के संवादों में शेखर खो गया।

अचानक तभी उसे धुंधला सा दृश्य दिखा कि पूर्वी रास्ते से-शायद गाय, बैल के झुण्ड को हांकते हुए आठ-दस लोग आ रहे हैं।

पहले तो शेखर ने नजरअंदाज किया, लेकिन जब सैकड़ों गोवंश के खुरों की आवाज तेज होने लगी तो उसका कहानी लिखने से ध्यान भंग होने लगा।

तब उसने दृष्टि उठाकर देखा

क्या देखा?

“शायद जो अब तक नहीं देखा था या कि उसने देखा भी तो गहराई में नहीं गया रहा होगा”
आठ दस लोग जो गोवंश पर डंडों की बरसात और क्रूरता की हदें पार कर रहे थे, गायों और उनके दो-तीन वर्षीय बछड़ों और बैलों को बांधकर ऐसे भी नहीं, जैसे यमराज के पाश में जकड़ा हुआ हो। रस्सी का एक सिरा उनके मुंह और गले से तो दूसरे सिरे को नथुनों से लगाकर उनके पैरों दायें या बाएं पैर में शेखर ने यह गौर नहीं किया था।

यातना की विवशता में गाय और रंभाते हुए उनके बछड़े मानों ह्रदय को विदीर्ण कर देंगे, इतनी मर्मभेदी चीत्कार शायद ही शेखर ने इससे पहले कभी सुनी रही होगी।

जैसे-जैसे गोवंश का झुण्ड नजदीक आता जाता और क्रमशः बढ़ता जाता उसी गति से शेखर की ह्रदय की गति भी बढ़ने लगती।

शेखर जिन छोटे-छोटे बछड़ों से कभी खेलने के लिए इच्छुक होता था और बचपन में उसने प्यारे-प्यारे बछड़ों के साथ खूब वक्त बिताता था।

वह उनके साथ अब भी बहुत खेलना और पुचकारना चाहता था किंतु जब आज उन्हें इस तरह की दयनीय स्थिति में देख रहा था तो उसके रोंगटे खड़े होने लगे ।

शेखर से जब रहा न गया तो प्रतिक्रिया देते हुए उन लोगों में से एक को आवाज लगाते हुए कहा- अरे! भाई सुनो
उस व्यक्ति ने शेखर को अनसुना किया और आगे बढ़ने लगा, शेखर ने फिर से उसे आवाज दी लेकिन जब वह नहीं रूका तो शेखर उसका पीछा करने लगा।

शेखर ने तेजी से आवाज देते हुए कहा रूको लेकिन वह व्यक्ति और तेज कदम बढ़ाते हुए नजरअंदाज कर रहा था।
गोवंश के उस समूह में लगभग दो वर्षीय बछड़े को जो अब चलने में असमर्थ हो रहा था जिसके कारण वह सही ढंग से नहीं चल पा रहा था उस पर उस आदमी ने तेजी से कई डण्डे बरपा दिए जिसके कारण बछड़ा जमीन पर गिर पड़ा और एक करवट के सहारे लोट गया।

शेखर ने जब बछड़े को डंडे की मार से गिरते हुए देखा तो वह क्रोधित होते हुए बोला-
“ओ! जल्लाद कहीं के रूक! जा अब एक भी डंण्डा मारा तो तेरी खैर! नहीं’’
शेखर की आवाज सुनकर वह आदमी ठिठका और सहमते हुए बोला –
क्या करूं?
देखो! लड़के बदजुबानी न करो
शेखर ने प्रत्युत्तर देते हुए कहा कि क्या कर लोगे?
और हम कौन सी बदजुबानी कर रहे हैं, जल्लादों का काम कर रहे हो तो क्या कहेंगे?
तुम बतलाओ, इन्हें कहां लेकर जा रहे हो?
इस तरह क्यों बांधकर मार रहे हो, इन निर्दोष गोवंश ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?
उस व्यक्ति ने अपने अन्य साथी को आवाज देते हुए कहा कि-
थोड़ा रूको तो, अनवर भाईजान ये लड़का हमसे तीस मारी कर रहा है।
सबको रोको और यहां बुलाओ !
उधर से अनवर ने आवाज लगाते हुए कहा-अली भाई काहे को मुंहजोरी कर अपना वक्त बर्बाद कर रहे हो।
अभी तो बहुत दूर चलना है, ट्रक अभी भी अड्डे से दस किलोमीटर दूर खड़ें है सभी जगह के मॉल इकट्ठा हो जाएं तो वहीं से लोड भी करना होगा।
अली ने शेखर को घूरते हुए बन्द जुबान में शायद गालियां बकने लगा, आवाज का स्वर भले धीमा था लेकिन शेखर ने उसके होठों को पढ़ लिया जिससे उसका खून खौल उठा था।
शेखर ने कहा -अबे! चुप
का बोला?
गाली दी तुमने?
देखो तुम अपनी सीमाएं लगातार लांघ रहे हो और अब एक शब्द भी निकले तो ठीक नहीं होगा।
शेखर वाद-विवाद करते हुए बगीचे से करीब आधा किलोमीटर दूर आगे निकल आए था।
जिस बछड़े पर अली ने प्रहार किया था, उसकी कमर टूट चुकी थी जिसके कारण उसने उसे वहीं रस्सी से खोलकय आगे बढ़ चला था।
शेखर धीरे-धीरे अब उग्र सा होने लगा
बछड़े की पीड़ा के कारण अब शेखर ने उन जल्लादों को सबक सिखाने का निश्चय बना लिया था।
शेखर के दिमाग में कुछ सूझा और वह वहीं रुक गया, क्योंकि उसके मन में गो-तश्करी होने की आशंका अब सत्य का मूर्त रूप लेती जा रही थी।

शेखर ने पुलिस कंट्रोल रूम की हेल्पलाइन में फोन किया लगभग दसों बार फोन करने के बाद जब कंट्रोल रूम से फोन रिसीव किया गया तो शेखर ने स्थान की जानकारी सहित गौ-तश्करी की बात बतलाई और कहा कि आठ-दस लोग सैकड़ों गोवंश को जंगल वाले रास्ते की ओर लिए जा रहे हैं।

अनवर की कही बात को कि गौ-तश्करी के बड़े जाल और ट्रकों में भरने की जानकारी दी।
उनकी ओर से प्रत्युत्तर आया कि आप जैसे भी हो उनके पीछे हो लीजिए, हमारी टीम आपकी लोकेशन देखते हुए आ रही है।

शेखर ने पुलिस को सूचना देने के बाद तुरंत सरपट दौड़ लगाते हुए गौ-तश्करों का पीछा करने लगा।
अब उसका स्वर और तेज हो चुका था, शायद वह जानबूझकर शोर मचाना चाहता था जिससे अगर आस-पास से कोई भी उसकी आवाज सुने तो मदद के लिए आ जाए।
किन्तु वह सुनसान रास्ता था जहां दूर -दूर तक कोई भी दिखाई नहीं दे रहा था।
शेखर को यह भी डर था कि कहीं गौ-तश्कर उस पर आत्मघाती हमला न कर दें इसलिए उसने रास्ते के किनारे पड़ी लगभग तीन फुट की लकड़ी जो लाठीनुमा थी उसे अपने बचाव के लिए ले लिया था इसके साथ ही व सतर्कता बरतते हुए लगभग सौ मीटर की दूरी बनाए हुए चल रहा था।
इस तरह शेखर अपनी ओर से भरपूर कोशिश करते हुए उन गौ-तश्करों से लड़ता-झगड़ता और चिल्लाता हुआ उनका पीछा करते हुए आगे बढ़ता जा रहा था।

शेखर को पीछे से वाहन आने की आवाज सुनाई दी, उसका अंदाजा भी सही निकला जो पुलिस का ही वाहन था।
शेखर ने उन्हें रोका और सम्पूर्ण घटनाक्रम फिर से बतलाया उस वाहन में करीब एक दर्जन पुलिस के जवान थे।
पुलिस वाले ने गौ-तश्करों को आवाज लगाते हुए कहा-अबे! हरामखोरो तुरंत रूक जाओ और अब एक कदम भी आगे नहीं बढ़ना अन्यथा ठीक नहीं होगा।

पुलिस के वाहन में लगा हूटर बजा और रास्ते को पुलिस ने दोनों ओर से ब्लाक कर लिया, हालांकि पुलिस को आता देखकर गौ-तश्कर भागने के प्रयास में थे, किन्तु जब भागने की संभावनाएं नहीं बची तो पुलिस के सामने आना उचित समझा।

उन तश्करों में से अनवर पुलिस के सब इंस्पेक्टर दुर्योधन के पास आया और मासुमियत भरे लहजे में कहा
साहब! हम गरीब लोग इन मवेशियों को अपनी गौशाला लिए जा रहे हैं जिसके कुछ कागजात हमारे पास हैं आप पुख्ता कर लीजिए।

दुर्योधन ने कड़क आवाज में कहा हुंह -हम समझ रहे हैं तुम चालाकी हमसे न खेलना वर्ना सलाखों में करने में हमें मिनटों नहीं लगना है।

चलो! दिखाओ कागज... अनवर ने दुर्योधन के सामने कई सारे कागज रख दिए जिनमें कई लोगों के दस्तखत बकायदे गोवंश के डील-डौल और बेचीनामा के साथ थे, जिनमें जो गोवंश गांवों के सरपंचों और गवाहियों के साथ कस्बों के पार्षदों के नाम और पद मुहर के साथ थे।

अब यह कागज असली हैं या फर्जी हैं,शेखर यह नहीं बतला सकता और तो और इसका निर्धारण करने में दुर्योधन भी थोड़ा असहज महसूस कर रहा था।

लेकिन पुलिस वालों का इस तरह के मामलों की पड़ताल करना प्रतिदिन का काम है इसलिए दुर्योधन को सारा माजरा स्पष्ट समझ आ गया।

दुर्योधन की त्यौरियां चढ़ गई थी जिससे वह गुस्से में लाल-पीला होने लगा, शेख को अब जाकर थोड़ी राहत मिली कि दुर्योधन अब इन तश्करों को हवालात की सैर करवाएगा।
तभी अनवर को एक हवलदार ने दुर्योधन की खुशामद कर मामले को रफा-दफा करने के सलाह दी, अनवर को तो इस मौके की कब से प्रतीक्षा थी।

अनवर ने दुर्योधन से विनम्रतापूर्वक कहा हुजूर! आप से विनती रही थोड़ा आप उधर चलेंगे हम आपको सबकुछ सच-सच बता रहे हैं।

पहले तो दुर्योधन ने ना-नुकुर की लेकिन कुछ ही मिनट में चलो! ठीक है कहते हुए दुर्योधन और अनवर दोनों वाहन के पीछे की ओर चले गए।
शेखर अब वहां उपस्थित उन्हीं पुलिसवालों से अपना परिचय और घटनाक्रम की चर्चा करने लगा।
उसी हवलदार ने शेखर को शाबाशी देते हुए कहा -बेटा! आज तुमने बहुत बढ़िया काम किया है।
उधर अनवर और दुर्योधन के बीच क्या बात हुई यह तो शेखर को समझ नहीं आया लेकिन जब पन्द्रह मिनट के बाद वे दोनों वापस आए तो अनवर जिसका चेहरा अभी तक हवाइयां खा रहा था वह प्रसन्न और दुर्योधन के लहजे में नरमी आ गई थी।

ऐसा लग ही नहीं रहा था कि यह वही अनवर है, जिसके पुलिस आने और सब इंस्पेक्टर दुर्योधन के सख्त तेवर के कारण प्राण सूखे हुए लग रहे थे।
शेखर कांस्टेबल के साथ चर्चा करने में लगा था, उधर से दुर्योधन ने गंभीर मुद्रा बनाते हुए कहा-शेखर तुम नाहक में ही परेशान हुए।

किन्तु आज तुमने बहुत बड़ा और जागरूकता भरा कदम उठाया है जो इसकी सूचना दी हमने इनके गौशाला प्रबंधक से बात कर इसकी पुष्टि कर ली है।
कहीं इनकी जगह कोई तश्करी करने वाले होते तो इतने सारे गोवंश को कसाई खाने में ले जाकर वध कर दिया जाता।

शेखर ने जब दुर्योधन के कथन को सुना तो वह अवाक् रह गया कि आखिर सब इंस्पेक्टर क्या बोल रहे हैं?
शेखर ने सन्देहास्पद निगाहों से सब इंस्पेक्टर की ओर देखा और कहा -क्या सर?
आप क्या बोल रहे हैं? ये गो-तश्कर नहीं हैं?

ये तश्कर ही हैं, सम्भवतः आप इनके रंग-ढंग और फरेबी कागजों के कारण इन्हें समझ नहीं पा रहे हैं।
आपके सामने ये जल्लाद! जो गिड़गिड़ा रहे हैं न! अगर आप सामान्य व्यक्ति होते तो इनके तेवर देखने लायक थे।

आप ही बताइए– तश्कर और गोपाल कों में क्या अन्तर होता है?
इतनी ज्यादा संख्या में रस्सियों में जकड़कर तो कोई भी पशुपालक इन्हें नहीं रख सकता, क्या मैं सही कह रहा हूं?
शेखर के कटु तीक्ष्ण प्रश्नों से सब इंस्पेक्टर के माथे में पसीना आने लगा था।

सब इंस्पेक्टर दुर्योधन ने झेंपते हुआ मामले को पटाक्षेप देने के हिसाब से कहा- देखो! शेखर बेवजह मामले को तूल न दो, सही-गलत की तहकीकात करने हम आए हैं या तुमको ही जब निर्णय करना था तो क्यों फोन कर हम सभी का समय बर्बाद किए।
हम जो बतला रहे हैं, उसको मानो
तुम अपना रास्ता नापो!
बाकी हमने अनवर सहित इन चारों की सारी जानकारी ले ली है।
जैसा कि तुम कह रहे हो अगर हमें इस पर कोई सन्दिग्धता समझ आई तो इस पर हम उचित वैधानिक कार्रवाई करेंगे।
ऐसा कहकर दुर्योधन ने शेखर को मुआमले के प्रति अपनी संजीदगी का परिचय देना चाहा।
अब शेखर को लगा शायद सब इंस्पेक्टर सही बोल रहा हो और मेरा सन्देह गलत हो?
किन्तु शेखर इस पर विचार किए बिना स्वयं को सहमत नहीं कर सकता था।
शेखर एक पल को शांत चित्त होकर सोचने लगा कि- अगर ये गोवंश कसाई खाने के लिए नहीं ले जा रहे हैं तो गोवंश को इतनी निर्दयतापूर्वक क्यों पीटते हैं?
क्या कोई भी पशुपालक अपने गोवंश के साथ कभी भी इतनी क्रूरता कर सकता है?
उस जल्लाद ने जिस तरह से बछड़े पर प्रहार किया था जिससे वह तड़प रहा है, क्या कोई पशुपालक ऐसे मारेगा?
नहीं! न, तो फिर सब इंस्पेक्टर दुर्योधन फिर क्यों उल्टा बतला रहा है?
इसमें क्या कोई साजिश है? अगर नहीं तो दुर्योधन की भावभंगिमाएं अचानक पलट क्यों गईं?
शेखर के मन में ऐसे प्रश्न गूंजने लगे मानो! वह किसी बवंडर में फंस गया हो।
ऐसे में शेखर अब खुद को विश्वास नहीं दिला पा रहा था।

क्या वह जो देख रहा है, वह क़ी स्वप्न है? या वह कहानी लिखने के चक्कर में कोई किसी कल्पनालोक में तो विचरण नहीं कर रहा है?
नहीं! बिल्कुल भी नहीं!

वह किसी भी कल्पनालोक या स्वप्न नहीं देखा रहा है, वह तो जीवंत साक्षात्कार और घटना का गवाह है।
उसी ने पुलिस को बुलाया है तथा बछड़े की मर्मान्तक चीख सुनी है इन सभी बातों के मस्तिष्क में चलायमान होने के कारण वह अन्दर-अन्दर कंपकपाने लगा।
दुर्योधन ने कहा आप जाइए हम इन्हें समझाइश देकर आ रहे हैं कि गोवंश को अच्छे से ले जाएं।
शेखर क्या करता? क्या न करता?
सब-इंस्पेक्टर दुर्योधन की कुटिलता उसके सामने आईने की तरह साफ हो चुकी थी।
शेखर ह्रदय में पीड़ा और क्रोध लिए वापस उसी रास्ते से बगीचे की ओर जहां उसका वाहन खड़ा था वहीं लौटने लगा।

शेखर उस स्थान पर आकर रुक गया उसने देखा कि जिस बछड़े को अली! ने डंडे से पीटा था, वह बछड़ा असहनीय पीड़ा से छटपटा रहा था।

उसकी आंखें बड़ी सी निकल आई थी, पेट का आकार बड़ा हो चुका था।
बछड़े के मुंह से तरल पदार्थ के निकलने के कारण मुंह के पास की जमीन गीली हो चुकी थी ।
बछड़े की कष्टदायी स्थिति को देखकर शेखर भावुक होकर रोया जिससे उसके नेत्रों में आक्रोश और ज्यादा बढ़ गया।

शेखर ने खुद को संभालते हुए तौलिये से अपना मुंह पोंछा और स्वयं को ढांढ़स बंधाने का यत्न करने के बाद जेब से अपना मोबाईल फोन निकालकर किसी को फोन करने की सोची।
फोन देखा तो उसमें नेटवर्क ही नहीं था, बड़ी मशक्कत के बाद जब वह इधर-उधर दस-बीस मीटर भटका तो एक जगह फोन में नेटवर्क आ गया।
उसने शहर में सरकार और एनजीओ के द्वारा संचालित गौशाला प्रबन्धनों को कई बार फोन किया, दो-तीन बार किसी ने फोन नहीं उठाया तो शेखर मायूस सा हो गया लेकिन फिर भी अपना प्रयास जारी रखा।
अबकी बार फोन लगाया तो प्रबंधन के द्वारा जब फोन उठा लिया गया तो शेखर ने सारे घटनाक्रम को बतलाने के बाद उनसे स्थान सम्बन्धित जानकारी देकर निवेदन किया-

“कृपया गौसेवकों की टोली वाहन सहित जल्दी भेज दीजिए एक बछड़ा जीवन-मृत्यु से जूझ रहा है, शायद इलाज मिलने पर उसके जीवन की रक्षा हो जाए”

उधर से जवाब आया कि-“हम जल्द ही गौसेवकों की टोली भेज रहे हैं, आप निश्चिंत रहिए हमारा यही कार्य है।”
शेखर को अब दुर्योधन के बारे में पूर्ण निश्चय हो चुका था कि वह लेन-देन कर गौ-तश्करी करवा रहा।
अतएव शेखर भी अब कहां हार मानने वाला था, क्योंकि वह हर हाल में समस्त गोवंश की रक्षा करना चाहता था।
शेखर ने शहर के एक मीडियाकर्मी को फोन किया किंतु जब उसकी ओर से यह जवाब आया कि -“हम ठेका ले रखे हैं क्या? आप हमें वेतन देते हो कि हम दौड़े चले आएं यह सब तो रोज का ही काम है।”
शेखर ने चलिए ठीक है कहकर फोन रख दिया।

शेखर के बड़े भैय्या विवेक जो कि कलेक्ट्रेट में क्लर्क थे शेखर उनसे यह नहीं बताना चाहता था।
शेखर जब विकल्पहीन हो गया तो उसके पास वही बस एकमात्र विकल्प बचा था, क्योंकि पुलिस की शिकायत बाद में की जा सकती है लेकिन अभी के लिए तो यही जरूरी था कि गौ-तश्करों के चंगुल से गोवंश को छुटकारा दिलाना।

समय अपनी गति से बढ़ता ही जा रहा था अब तक दो घंटे से ज्यादा का समय व्यतीत हो चुका था, अगर शेखर पुलिस की ही अभी शिकायत करता है तो शायद उसकी बातों को गंभीरता के साथ न लिया जाए जिससे गौतश्कर अपने मंसूबों में कामयाब हो जाएंगे।

वैसे भी सरकारे और प्रशासन का तंत्र कहां किसी बात को गंभीरता से लेता है आजकल तो नोटों के वजन के आगे अन्याय को न्याय बतला दिया जाता है, सारे तश्कर पुलिस को मोटी रकम देने के कारण ही तो बेधड़क फल-फूल रहे हैं।

शेखर ने विवेक भैय्या को फोन कर सिलसिलेवार ढंग से सारी बातें बतलाई, उधर से भैय्या ने कहा ठीक है!
हम कलेक्टर साहब को सूचित कर रहे हैं तुम! परेशान न हो,
मैं तो कहता हूं तुम घर आ जाओ बाकी अब कार्रवाई तो हर हाल में होगी।
शेखर ने कहा -नहीं भैय्या मैं तब तक यही हूं आप चिन्ता न करिए वापस रास्ते पर ही ही बछड़े के पास बैठा हूं।
शेखर चिंतित था कि शहर की गौशाला से गौसेवकों की टीम अभी तक नहीं आई है, जिस तरह समय बीतता जा रहा है इसलिए अब ऐसा लग रहा है कि उनके आने की कोई उम्मीद नहीं रह गई है।
एक ओर जल्लाद तश्कर गोवंश को यातना देते हुए खदेड़े लिए जा रहे हैं तो दूसरी ओर लगभग तीन सौ मीटर की दूरी पर उसका वाहन खड़ा हुआ है।

शेखर बछड़े को भी छोड़कर नहीं जा सकता था क्योंकि कुत्तों के झुण्ड का उस पर हमला करने का डर और उसकी संवेदनशीलता तो एक पल के लिए भी बछड़े को कष्ट में नहीं रहने देना चाहती थी।
तभी एक गाय जो शायद उन तश्करों के छूटकर भागी हुई चली आ रही थी वह तीव्र स्वर में रंभाती और लंगड़ाते हुए इसी ओर आ रही थी, सम्भवतः उसका आगे का एक पैर चोटिल हो चुका था।
गाय की मर्मान्तक आवाज से पूरा माहौल चीत्कार करने लग गया था, शेखर के सामने ही यह सब घटित हो रहा था।

वह फूट-फूटकर रोने लगा क्योंकि उसमें अब इतनी सहनशक्ति नहीं बची थी कि वह गाय की चीख सुन सकता, वह सन्न सा हो गया था।

गाय जैसे ही उसके पास से गुजरी शेखर ने उसकी रस्सी खोलने का प्रयास किया, किन्तु गाय भागने लगी शायद गाय को लगा होगा कि यह भी उन जल्लादों में से ही है।

शेखर ने फिर भी हार नहीं मानी लगभग पांच-सात मिनट की मेहनत के बाद वह रस्सी खोल पाने में सफल हुआ।
बंधन से मुक्त होने के उपरांत गाय ने भी ऊर्ध्व सांस भरी तथा दौड़ती हुई आगे चली गई।

सूरज अब पूर्व से यात्रा करते हुए पश्चिम की ओर जा रहा था घड़ी में पांच बजने वाले थे।
अचानक उसने देखा कि बछड़ा अपने पैर झटक रहा है, उसकी बड़ी-बड़ी आंखें और पुतलियां घूमने लगी हैं।
बछड़े ने थोड़ा मूत्रत्याग किया उसकी ऊपरी आंख फड़की और अश्रुधार बहती हुई उसकी गर्दन तक बह चली तथा उसने सांसे लेना बन्द कर दिया।

शेखर को लगा सम्भवतः बछड़ा बेहोश हो गया है, इसलिए उसने अपने कान बछड़े के पेट में रखे किन्तु उसे बछड़े के पेट में कोई भी हलचल नहीं सुनाई दी तथा सांस लेने की भी आवाज सुनाई नहीं दे रही थी।
शेखर की आंखे भर आईं वह ग्लानि से भरकर उसका चेहरा तमतमा गया उसके फूट-फूटकर विलाप करने के कारण गला अवरुद्ध हो गया।

आह! कर उसने गहरी सांस भरी, हे! भगवान यह क्या हो गया कहकर भयातुर और शोकमग्न हो गया।
शेखर पीड़ा और शोक को ह्रदय में दबाते हुए ईश्वर से उस बछड़े की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हुए शांति पाठ-

ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष शान्ति:पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति: वनस्पतय: शान्तिर्विश्वेदेवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:सर्वँ शान्ति: शान्तिरेव शान्ति:सामा शान्तिरेधि सुशान्तिर्भवतु।
ॐ शान्ति:! शान्ति:!! शान्ति:!! –
पढ़कर राम-राम कहकर अश्रुपूरित श्रध्दांजलि देते हुए वहीं पड़ी मिट्टी को बछड़े के शरीर को समर्पित कर शेखर नि:शब्द हो गया।

गोवंश का समूह लगभग आंखों से ओझल हो चुका था सब इंस्पेक्टर दुर्योधन भी कुछ देर पहले ही वापस चला गया था ।
शेखर के मन में विचार आया कि वह अभी भी उन तश्करों का पीछा करे? लेकिन जब पुलिस की संदिग्धता पर उसने विचार किया तो थोड़ी सतर्कता बरतनी उचित समझा।

तभी! विवेक भैय्या का फोन आया कि कलेक्टर साहब ने जिला पुलिस अधीक्षक अभ्युदय को वस्तुस्थिति बतला दी है।

अब तुम पूर्णरूपेण आश्वास्त रहो, कुछ ही देर में उनकी टीम पहुंचती ही होगी।
शाम के साढ़े पांच बज चुके थे अब तक गौतश्कर भी अपने सुनियोजित स्थान में गोवंश के समूह को लेकर पहुंच ही चुके रहे होंगे।

शेखर बछड़े की मृत्यु और जीवन का विचार ही कर रहा था कि उसे तीन-चार वाहनों के आने की आहट समझ में आई, उसे लगा कि यह पुलिस की ही कोई दूसरी टीम होगी।
किन्तु उसने अकेला होने के कारण फिर भी सतर्कता बरतते हुए थोड़ा किनारे होना ही उचित समझा लेकिन यह जैसे ही स्पष्ट हुआ वह पुनश्च अपनी जगह में वापस आ गया।
पुलिस के एक जवान ने आवाज देते हुए कहा -क्या आप ही शेखर हो?
शेखर ने कहा -जी! मैं ही शेखर हूं

पांचों गाड़ियां वहीं रुकी और सारे घटनाक्रम की रूआंसा होकर डीएसपी बलवेन्द्र को दी जिसे पुलिस अधीक्षक अभ्युदय ने भेजा था।

शेखर उनके साथ बैठकर उसी रास्ते में चला-आगे का इलाका तराई एवं जंगली इलाका था,जहां इंसानी बस्तियां छुटपुट ही बसी होती हैं या गांव बसे भी होंगे तो कहीं दूर किनारे।

जंगल में प्रवेश करने के बाद एक जगह खड़े होकर उनकी उपस्थिति का अंदाजा लगाने के लिए एक जवान जीप से झाड़ियों के किनारे झुरमुट के बीच से देखता है तो -घुमावदार पगडंण्डीनुमा रास्ते के पीछे गोवंश का विशाल समूह और सात-आठ ट्रक वही पास में खड़े हुए दिखते हैं।

सम्भवतः हजारों की संख्या में गोवंश को जंगल की तलहटी में एकत्रित कर गोवंश को कसाई खाने में भेजने के लिए ट्रकों को बुलवाया गया था जो कि तश्कर हमेशा पुलिस के गठजोड़ कर  निर्भीक होकर गौ-तश्करी करते हैं।
डीएसपी बलवेन्द्र ने गौतश्करों पर कार्रवाई करने में किसी भी तरह की जल्दबाजी न दिखाते हुए जिला मुख्यालय को सूचना देकर और पुलिस बल बुला लिया ।

अनुमानतः जब एक सैकड़ा पुलिस बल आ गया तब डीएसपी बलवेन्द्र ने चारो ओर से घेरने के बाद सभी तश्करों को समर्पण करने की चेतावनी दी, उनमें से कुछ तश्करों ने भागने की कोशिश किन्तु जवानों ने उनकी गर्दन दबोच ली।

मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए डीएसपी बलवेन्द्र ने तस्वीर एवं वीडियोग्राफी करवाकर वाहन संख्या, तश्करों के नाम इत्यादि जानकारी लिखी किन्तु ज्यादातर ट्रकों में वाहन संख्या नहीं लिखी थी या कि रबड़ के पट्टे से छिपा लिया गया था।

बलवेन्द्र ने इधर अपनी औपचारिक कार्रवाई जारी रखी थी तब तक घटना स्थल पर शेखर के भैय्या सहित कुछेक मीडियाकर्मी  वहां आ चुके थे।

शेखर जब गौ-तश्करों को पकड़वाने में कामयाबी हासिल कर ली तो उसका आत्मबल बढ़ गया था जिससे उसके चेहरे में मायूसी के घेरे कम होने लगे तथा वह प्रसन्नचित होने लगा था ।
भावविभोर होते हुए शेखर ने डीएसपी बलवेन्द्र को धन्यबाद देते हुए कहा-

श्रीमान मेरे दिमाग में अभी भी एक प्रश्न गूंज रहा है ,अगर आप इस पर भी ध्यानाकृष्ट करेंगे तो कृपा होगी।
बोलो! बेटे हम इसीलिए तो हैं तुम जो भी कहोगे हम उस पर संजीदगी से कार्य करने का तुमको वचन देते हैं, ऐसा बलवेन्द्र ने शेखर से कहा।

शेखर ने कहा -इन ट्रक चालकों से पूछताछ कर पता करना चाहिए कि गौवंश को तश्कर कहां लेकर जा रहे थे?
इनका सरगना कौन है? इत्यादि-इत्यादि।

――ठीक कहा- शेखर!

डीएसपी बलवेन्द्र ने ट्रक चालकों से सम्पूर्ण जानकारी लेकर उसकी वीडियोग्राफी करवाई ।
ट्रक चालकों ने बतलाया कि-
पड़ोसी राज्य के जंगल के बीच में एक कसाई खाना है।
आगे बताओ यह किसने खोला है? बलवेन्द्र ने कहा।
ट्रक चालक सहमें लहजे में बोल उठे -वहां के विधायक जी के संरक्षण में कसाई खाना चल रहा है।
वे सभी बहुत बड़े जल्लाद हैं
जिसने भी उनके विरुद्ध आवाज उठाई वह फिर कभी जिन्दा नहीं बचा।
ट्रक चालकों के बयानों की वीडियोग्राफी करने के बाद सभी तश्करों को हथकड़ी पहनाकर पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया तथा वाहनों की जब्त कर जिला पुलिस मुख्यालय लाया गया।
पुलिस मुख्यालय पर प्रेस वार्ता करते हुए न्यायिक प्रक्रिया के अनुसार अपराधियों के विरुद्ध कठोरतम दण्ड देने की बातें कहीं।

शेखर भी अपने भैय्या के साथ 7 बजे तक वापस लौट आया घर आकर उसने सम्पूर्ण घटनाक्रम बतलाया।
अगले दिन शहर के अखबारों एवं मीडिया में शेखर और बलवेन्द्र के साहस सहित पूरा मामला छाया रहा।
जिसने भी शेखर के साहसिक कार्य को सुना-जाना उसने शेखर की मुक्त कंण्ठ से प्रशंसा करते हुए उसे बधाइयां देता गया।

किन्तु शेखर घटना के दूसरे दिन भी अप्रसन्न एवं चिंतित रहा आया था, क्योंकि शेखर के दिमाग में अभी भी उसके कहानी लिखने जाने के बाद हुआ घटनाक्रम उसे अन्दर -अन्दर कचोटत रहा था।
इनमें सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात यह थी कि कसाई खाने को दूसरे राज्य के विधायक द्वारा संरक्षण देने की बात कि– ऐसा कोई कैसे कर सकता है?
क्या यह सब हमारे देश भारत में ही हो रहा है?

शेखर! ने खुद से बुदबुदाते हुए कहा– मैं कोई स्वप्न तो नहीं देख रहा?
उसके ह्रदय से आवाज आई

नहीं! शेखर यह स्वप्न नहीं सत्य का साक्षात्कार है ,जिसे तुमने अपनी आंखों से देखा और यथार्थ को भोगते हुए उसके गवाह बने हो!!

सारा वक्त जब इन्हीं झंझावातों में शेखर के लिए मानसिक युध्दस्थली का पर्याय बन चुका था।
सूरज पूरब से पश्चिम की ओर ढलता हुआ चला रहा था, शेखर के मन में आया कि क्यों न पार्क चला जाऊं?
शायद मन को थोड़ी शांति मिले जिससे कल का घटनाक्रम मस्तिष्क के पटल से धुंधला सा हो जाए।
शेखर अपने वाहन से पार्क पहुंचकर कोमल सी घास में जाकर क्षितिज की ओर देखता हुआ लेट गया।
डायरी -कलम किनारे रक्खी और ईश्वर का ध्यान करते हुए आंखे बन्द कर ली कि ध्यान विकेन्द्रित हो जाए।
किन्तु पार्क में भी उसके मनोमस्तिष्क में कल के दृश्य धुंधले होने की बजाय स्पष्ट तौर पर चलचित्र की तरह गतिमान हो गए!!

विचारों ने पुनश्च शेखर को अन्तर्द्वन्द्व को आमंत्रण देकर ठीक न्यायालय में वकील की तरह बहस करने लगे जिससे उसका मन विचलित सा हो चुका था!!
शाम का समय हो रहा था,मौसम में अजीब सी खामोशी, सन्नाटा और पेड़ों के पत्तों को हवा हिला-डुला रही थी।
हवा कभी तेज तो अचानक मध्दिम स्वर में बहने लग जाती,
आकाश में लाली और कालिमा का सम्मिश्रण !!
शेखर ने कल उठाई और डायरी के खाली पृष्ठों में कलम से लिखने लगा-
यह गोधूलि बेला का समय है जो मनोहारी और अन्तर्मन को प्रसन्नता की सीमा में भर देने वाला है, किन्तु गोधूलि बेला अब नाम बस की रह गई है?

गायें अब गोचर नहीं जातीं और न ही कोई चरवाहा दिखता है, परिवेश कितना बदल गया है न?
शायद! हम इक्कीसवीं सदी में आ गए हैं ,जब गायों का उसके वंश समेत निष्कासन हो चुका है।
अब हम कहीं भी देखें तो गौशाला की बजाय सड़कों पर गोवंश समूह में बैठे और टहलते हुए मिल जाएंगे।
भारतवर्ष की समृध्दि का प्रतीक माने जाने वाले गौशालाओं के खूंटे शून्य और खालीपन से भर गए हैं।
अब तो ट्रकों में निर्जीव वस्तु की तरह गोवंश को लादकर कसाई खाने ले जाया जाता है,शायद सांस लेने की भी जगह नहीं रहती।

गौमाता और उनकी संतानें भूखी हैं या प्यासी अब इसकी किसी को भी परवाह नहीं है?
हां, अब वो इन मनुष्यों की यानि दानवों की यानि दानव की संज्ञा देना भी कम होगा न?
गोवंश का मांस जिसे “बीफ” कहते हैं, उसे भोज्य हेतु थालियों में परोसने के लिए ले जाया जाता है।
सरकार ने बकायदे कसाईखानों को कानूनी लायसेंस दे दिया है  इसलिए अब “बीफ-पार्टी” की जाएगी?
शायद यह वही भारतवर्ष है? और यही विकास है न!

अब तो गौमाता को पालने वाले भी पल्ला झाड़ चुके हैं,क्योंकि इस आधुनिक परिवेश के अनुसार गौमाता और उनके वंशजों जिसकी हम विविध स्वरुपों यथा-नंदी भगवान के रूप में पूजा करते है।
उसका इस भारत भूमि में कोई ठिकाना नहीं रह गया ?
गौमाता का आर्त! और गहरी पीड़ा का स्वर उसके नेत्रों से बहते वेदनासिक्त अश्रु इस पर अट्टहास करते समस्त जन!

हां यही मेरा “भारत” देश है?
गौमाता को ग्रास देने की प्रथा बंद हो रही है या लगभग खत्म सी हो चुकी है!
हमारी सनातन समाज-संस्कृति के सुख -दु:ख दोनों में मुक्ति प्रदाता “मां” गौमाता जो जीवन के विभिन्न चरणों में संजीवनी का कार्य करती है, उसका इतना बड़ा तिरस्कार और बहिस्कार?
पूजन पध्दति में “गोदान”की जगह दस रुपये चल जाएंगे किन्तु प्रत्यक्ष तौर पर “गाय” नहीं?
पुरोहित भी अब मना कर देते हैं कि “गाय की बला”से भगवान बचाए!
वैतरणी पार लगाने वाली गौमाता को अब रातों-रात घर से निष्कासित किया जा रहा है, भूखी मरेगी या प्यासी इसकी किसी को भी चिन्ता नहीं रह गई?
आखिर! यह कैसा समाज बन चुका है?
“गोरस” जिसे अमृत कहा गया है, अब उसकी जगह कृत्रिम निर्मित सामानों ने ले लिया है,क्या यही प्रगति है?
धार्मिक अनुष्ठानों में गाय का गोबर जिससे भगवान गणेश का स्वरूप मान अर्चना करते हैं तथा चौक की लिपाई-पुताई कर उस स्थान को शुध्द करते हैं!!
“गोमूत्र” जो सर्वरोगनाशी है और अमृततुल्य दुग्ध जिसकी पौष्टिकता से जीवन सुडौल बन जाता है तथा जिसकी स्वीकारोक्ति वर्तमान के वैज्ञानिक अनुसंधानों के माध्यम से सिध्द कर की जा चुकी है!!
वर्तमान में ऐसी पावन और पूज्य “गौमाता”हमारे आंगन को छोड़कर चली जा रहीं हैं?
सबको पता है! न कहां?
किन्तु आप प्रत्यक्ष तौर नहीं देख पा रहे हैं इसलिए इसका भी कोई ज्ञान नहीं है न?
हमारी गौमाता कसाईखानों से होते हुए हमें अलविदा कह कर जा रही हैं।
इसका दोषी किसे ठहराएं?
हां हम आधुनिक होते जा रहे हैं, सम्भवतः हमारे पूर्वज निकृष्ट रहे होंगें जिन्होंने गौपालन-गौरक्षा में अपने प्राणोत्सर्ग तक कर दिए।
हम आज उन्हीं की पीढ़ीं है जो गौमाता को सहज ही अपने घर से निष्कासित कर गोवध के लिए भेज रहे।
कितना बड़ा दुर्भाग्य है न!
शेखर ने इतना लिखा और अश्रुमय होकर कलम तोड़ दी।
हाय! मुझे तो मर जाना चाहिए क्यों जिन्दा हूं -मेरे जीवित रहने का जब कोई अर्थ ही नहीं!
खुद को कोसता हुआ शेखर चुपचाप फिर से जमीन में लेट गया किन्तु उसकी अन्तर क्रोधाग्नि थी कि शांत ही नहीं हो रही थी।
शेखर ने फिर से दूसरी कलम उठाई और डायरी में लिखने लगा-

आह! वेदना और निरीह-निरपराध गौमाता और उनकी संताने तथा हमारा निष्ठुर समाज!
यह घोर पतन हैं तथा भारतीयों के विनाश की सूचना है जिसे हम समझ नहीं पा रहे या कि ऐसा कहना अनुचित नहीं है कि हम सचमुच पतनोन्मुख हो चुके हैं।

हमारी शान और शौक गोवंश के चमड़ों से बने जूते-बेल्ट-पर्स इत्यादि का बन जाना अधोपतन है-अधोपतन!
वर्ष -प्रतिवर्ष बीफ निर्यात के आंकड़ों में वृध्दि के साथ हम शिखर छू रहे हैं।
वाह! रे उन्नति कितना आगे हम बढ़ चुके हैं न?
हे! गौमाता जब तुम्हारा और तुम्हारी संतानों को कत्लखानों में वध किया जाता है, तब तुम जिस असीम पीड़ा से कराहती हुई पापियों के हाथों प्राणोत्सर्ग कर देती हो।

किन्तु फिर भी हम भारतवंशी उस लोमहर्षक चीत्कार और पीड़ा को नहीं सुन पा रहे, हे मां हम बहरे और सभी तरह से पतित हो चुके हैं।
इतिहास साक्षी है कि बर्बर-क्रूर-आतंकी -लुटेरों अरबों-तुर्को मुगलों सहित अंग्रेजों (ईसाइ यों) ने हमारी धर्म संस्कृति को नष्ट करने के लिए बलपूर्वक गौमांस भक्षण करवाने का यत्न किया जिसका प्रतिकार करते हुए हमारे वीर पुरखों ने अपनी मृत्यु को स्वीकार कर उनके कुटिलता पर प्रहार किया किन्तु कभी भी गौपालन-गौरक्षण का व्रत नहीं तोड़ा।

वहीं एक हम हैं जिनके लिए गाय माता नहीं बल्कि पशु की तुलना में आने लगी है, अन्यथा हमारी इस पुण्य भूमि में गौवंश कसाई खानों में न पहुचता।

भगवान श्रीकृष्ण जिनका नाम ही गोपाला है तथा उन्होंने बाल्यकाल से गायों की सेवा की ऐसे उपदेशक हमारे भगवान जिन्होंने गौ

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