लघुकथा : अट्टहास

डॉ. सुधा गुप्ता 'अमृता'
चुन्नू-मुन्नू भीख मांगते-मांगते थक गए थे, पर किसी ने खाने को कुछ न दिया। दोनों भाई एक बंगले के बाहर पड़ी रेत के ढेर पर बैठ गए। बंगले की खिड़की खुली थी। चुन्नू-मुन्नू ने फिर आवाज लगाई- 'रोटी-वोटी दे दो...', बहुत भूख लगी है।


 
खिड़की पर हिलती-डुलती काया ने झांका। उसकी आंखें बिलकुल सुर्ख लाल थीं। उसे देखकर चुन्नू-मुन्नू डर गए। हिम्मत करके वे दोनों फिर गिड़गिड़ाए- 'भूख लगी है, बाबू रोटी दे दो...।' हिलती-डुलती काया जोर से दहाड़ी, 'भूख लगी है... साले... ले...।' और उसने दारू की बोतल खिड़की से जोर से रेत के ढेर पर फेंक दी। खिड़की बंद हो गई। 
 
चुन्नू-मुन्नू ने एक-दूसरे को देखा। बोतल में अभी भी 2-4 घूंट दारू बाकी थी। चुन्नू ने बोतल उठा ली। चुन्नू-मुन्नू बारी-बारी से बूंद-बूंद पीने लगे। फिर चुन्नू रेत के ऊंचे ढेर पर जाकर बैठ गया, वैसे ही दहाड़ते हुए मुन्नू से बोला 'भूख लगी है... साले... ले...।' 
 
धचाक से उसने बोतल फेंक दी। वह अट्टहास कर हंसने लगा। बंगले में लगा तिरंगा झंडा जोर- जोर से हिलने लगा। चुन्नू-मुन्नू खड़े होकर गाने लगे- 'जन-गण-मन अधिनायक जय हैं, भारत भाग्य विधाता...!'
 
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