लघुकथा - देह की दुर्गति

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देवेन्द्र सोनी
चार भाई बहनों में बड़ी, नाजों से पली राजो का बचपन हंसते खेलते बीत गया था। कैशोर्य की अल्हड़ता और प्रस्फुटित हो रही मादकता ने उसके स्वभाव में चंचलता और स्वच्छंदता को बढ़ा दिया। गांव में उसके निखरते रूप और यौवन की चर्चा होने लगी। मनचले युवकों की टोली राजो को आते-जाते हल्के-फुल्के बेसुरे राग से उसका सौंदर्य बोध कराते जिसे सुनकर वह और अधिक खिल उठती। पहले तो राजो ने इन पर कोई ध्यान नहीं दिया किन्तु धीरे-धीरे वह प्रशंसा सुनने के मौके तलाशने लगी। परिणाम यह हुआ कि वह अनचाहे आरोपों से घिर गई और पढ़ाई छूट गई। बड़े घर की बेटी थी, समय रहते बदनामी के डर से बचने के लिए पिता ने आनन-फानन में उसकी शादी कर दी । 
 
राजो अपने विवाह से खुश थी। संपन्न ससुराल में उसे सब कुछ मिला पर शराबी पति से वह संतुष्ट नहीं थी। फलतः जल्दी ही ऊब गई। बार-बार रूठ कर मायके चली जाना राजो की फितरत बन गई। अतृप्त मन की कसक ने उसे विचलित कर दिया। उसकी बढ़ती स्वच्छंदता और लगते आरोपों के बीच वह दो बच्चों की मां भी बन गई पर उसके स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं आया ।
 
समय बीतता गया और एक दिन अत्यधिक शराब पीने की वजह से राजो संसार में अपने बच्चों के साथ अकेली रह गई। ससुराल वालों ने उस पर बदचलनी और पति की असमय मौत का आरोप लगाकर पल्ला झाड़ लिया। वह मायके आ गई पर मायके में भी कब तक रहती। उसके मनचले स्वभाव से सब परेशान थे। 
 
इतना कुछ बीत जाने के बाद भी राजो के स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं आया तो भाइयों ने मिलकर उसे पास ही के शहर में नौकरी लगवा दी। अब राजो अपने बच्चों के साथ शहर में एक किराए के मकान में रहने लगी। अकेलेपन का उसने जमकर फायदा उठाया और अनेक व्यक्तियों से उसके मधुर संबंध बन गए। पैसे की चाहत में वह लोगों को ब्लैक मेल करने लगी। उसकी बढ़ती ज्यादतियों से तंग आकर एक दिन घने जंगल में उसका मृत कंकाल पुलिस ने बरामद किया। जिस देह के बल पर राजो इतराती थी, वह देह हड्डियों के ढांचे में परिवर्तित हो चुकी थी। बमुश्किल राजो की शिनाख्त हो सकी। 
 
क्रिया कर्म के बाद लोग बतिया रहे थे - लगते आरोपों से यदि राजो सम्हल जाती तो आज देह की यूं दुर्गति न होती। सही ही तो कह रहे थे। 

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