लघुकथा : धरती मां

प्रज्ञा पाठक
एक दिन सौरमंडल के ग्रहों की सभा जुटी। सभी को अपनी-अपनी विशिष्टताओं का गुमान था।
 
मंगल को अपने अति सुन्दर लोहितांग पर घमण्ड था,तो बुध को आलोक-देव सूर्य के सर्वाधिक निकट रहने व अपनी तीव्र गति का।बृहस्पति विशालता में सर्वोपरि होने पर इतराया हुआ था,तो शुक्र को स्वयं के सर्वाधिक कांतियुक्त होने पर नाज़ था। 
 
शनि अपने तीन कुंडलाकार वलयों के बल पर प्राप्त 'सर्वाधिक मनोहर ग्रह' की उपाधि पर फूला हुआ था,तो यूरेनस पंद्रह पृथ्वियों को स्वयं में समेट लेने की क्षमता का अहंकार पाले था।नेपच्यून भी अपनी नीलिमायुक्त आभा पर मुग्ध था।
 
अचानक इनका ध्यान अब तक मौन बैठी पृथ्वी पर गया। सातों आत्मगर्वित ग्रह पृथ्वी के गर्व का कारण जानने के इच्छुक थे। उनकी  प्रश्नाकुल दृष्टि अपनी ओर पा पृथ्वी संयत स्वर में इतना ही बोली-"मैं तो मां हूं और मां अहं को इदं में विलीन कर निःस्वार्थ सेवा व समर्पण के द्वारा प्राणिमात्र को जीवन देने का दूसरा नाम है।इसीलिए 'मैं' कुछ नहीं,बस 'मां' हूं।"
 
पृथ्वी का अहंकाररहित उत्तर सुनकर सातों ग्रहों के अभिमानी मस्तक लज्जा एवं श्रद्धा से झुक गए।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

गर्मियों में करें ये 5 आसान एक्सरसाइज, तेजी से घटेगा वजन

रोज करें सूर्य नमस्कार, शरीर को मिलेंगे ये 10 फायदे

वजन कम करने के लिए बहुत फायदेमंद है ब्राउन राइस, जानें 5 बेहतरीन फायदे

ये 3 ग्रीन टी फेस मास्क गर्मियों में त्वचा को रखेंगे हाइड्रेट, जानें बनाने की विधि

गर्मियों में पहनने के लिए बेहतरीन हैं ये 5 फैब्रिक, जानें इनके फायदे

वीएफएक्स में बनाएं क्रिएटिव करियर

सेक्युलर शब्द भारत में धर्म की अवधारणा से मेल नहीं खाता

Malaria day 2024 : मलेरिया बुखार से बचने के 10 तरीके

25 अप्रैल: विश्व मलेरिया दिवस 2024 की थीम और इस रोग के बारे में जानें

बॉयफ्रेंड को दिन में करती थी 100 कॉल्‍स, डॉक्‍टर ने कहा Love Brain है, आखिर क्‍या है Love Brain Disorder?

अगला लेख