दर्द अपना-अपना

लघुकथा

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फाल्गुन ी
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* मा ँ,
मैं जानती हूँ कि तुम सब जानती हो। तुम कभी कुछ कहती नहीं लेकिन तुम्हारी आँखों की उतरती-चढ़ती लहरें सब कह जाती है। तुम सामने ऐसा दिखाती हो जैसे तुम्हें नहीं पता कि इन दिनों मेरा अफेयर चल रहा है। तुम्हारे राज में यह शब्द प्रतिबंधित है फिर भी सब कुछ जानते हुए भी तुम चुप हो, भला क्यों‍? कहीं इसलिए तो नहीं कि तुम भी कभी लड़की थी? मेरा दर्द यह है कि तुम कुछ कहती क्यों नहीं?

* बेटी,
तुम्हें लगता है मुझे कुछ नहीं पता। ठीक है, लगता रहे। लेकिन मैं बस यही कहूँगी कि मेरी खामोशी इसलिए नहीं है कि मैं अनजान हूँ तुम्हारे अफेयर से बल्कि मैं चुप हूँ क्योंकि मैं चाहती हूँ तुम इस अनुभूति को एक बार जरूर महसूस करों। शायद तुम अपना अफेयर मुझसे इसलिए छुपा रही हो कि तुम नहीं चाहती कि मैं उसका विरोध करूँ। तुम भूल रही हो कि मैं भी कभी लड़की थी। कौन माँ अपनी बेटी को प्यार करने से रोक सकी है भला? मेरा दर्द यह है कि तुम कोई गलत फैसला ना ले बैठों।

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