दहलीज

लघुकथा

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फ ाल्गुनी
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मैं दहलीज हूँ। मेरे भीतर रहने में ही 'उसकी' मर्यादा है। मेरे भीतर खड़ी होकर भी 'वह' मेरे ही बारे में सोचती है।

हर वक्त 'उसे' मेरी ही चिन्ता सताती है। मुझे (दहलीज) पार करने से भी 'वह' डरती है। मेरे प्रति आबद्ध-प्रतिबद्ध होकर भी अक्सर 'वह' मुझे (दहलीज) लाँघने के बारे में सोच लेती है।

क्या 'वो' अपराधिनी है? जबकि मेरी उससे कोई दुश्मनी नहीं। क्यों मुझे (दहलीज) सिर्फ 'उसके' लिए ही बनाया गया है? दरवाजे की चरमराती आवाज आई- ........'वो' लड़की है ना इसलिए।

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