मैं सुंदर हूँ

लघुकथा

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राज हीराम न
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आँखों के मरीज हम सब थे। किसी को कम किसी को कुछ अधिक तो किसी को कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था। मैं पहले में से था। मेरी बगल वाली ओढ़नी काढ़े महिला दूसरे वाली में से थी और उसके बगल वाली बुर्का पहने महिला तीसरे में से थी। हम साथ बड़े डॉक्टर ऋषि की प्रतीक्षा कर रहे थे। एक ही बड़े कमरे में बैठे थे। हम एक-दूसरे से अपनी-अपनी कहानी कह रहे थे।

मैं तो मधुमेही होने के कारण आँखों से पीड़ित था। कभी-कभी आँखों में खून उतर आता था और कुछ दिनों तक मैं देख नहीं पाता था। ओढ़नी वाली कुछ ही दिनों से पीड़ित थी, जबकि बुर्के वाली ने कभी दुनिया देखी ही नहीं थी।

' अगर आप देख ही नहीं पाती हैं तो यह पर्दा क्यों...?'

खुद ओढ़नी ओढ़े महिला ने बुर्के वाली से पूछा था।

' ताकि लोग मुझे नहीं देखें!'

' आपने खुद को देखा है कभी?'

' नहीं! पर मेरे पति कहते हैं, मैं सुंदर हूँ।'
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