घंटे भर बाद भी जब साहबजी आते नहीं दिखे तब वह सोचने लगी कि खाना पकाने में उसने कहीं जल्दी तो नहीं कर दी। अब उसे खाना पकाने के बाद का डर लगने लगा। कुछ देर बाद वही डर अपने पूरे तेवर के साथ उसके सामने खड़ा जोर-जोर से दहाड़ रहा था।
कम्बख्त कब का पका लिया खाना। ये भी नहीं सोचा कि ठंडा हो जाएगा। माँ-बाप ने कुछ सिखाया कि नहीं! समय पढ़के नहीं आई। नालायक!
उस दिन मोहल्ले भर ने देखा समय पर एक भी कार्य नहीं करने वाला आदमी एक औरत को समय का पाठ पढ़ा रहा है।