समय के बाद का सच...!

नरेन्द्र जोशी

Webdunia
' नल पर पानी भरते हुए उदासी के स्वर कुछ यूँ मुखर हुए। भाभी थकी जावाँजो...! (भाभी हम थक जाते हैं री) कहने का तात्पर्य यह था कि दिनभर काम ही काम आराम का नाम नहीं। जिसे संबोधित किया गया था उस भाभी ने उसकी हाँ में हाँ मिलाई और बोली- देखो न आज नल भी कितनी देर से आए। पूरे छः बज चुके हैं।

अरे बाप रे! छः बज गए। हे भगवान! जल्दी से खाना पकाऊँ। वर्ना खैर नहीं। इतना कहकर वह अंदर आई फिर फटाफट खाना पकाकर अपने उनका रास्ता देखने लगी।

ND


घंटे भर बाद भी जब साहबजी आते नहीं दिखे तब वह सोचने लगी कि खाना पकाने में उसने कहीं जल्दी तो नहीं कर दी। अब उसे खाना पकाने के बाद का डर लगने लगा। कुछ देर बाद वही डर अपने पूरे तेवर के साथ उसके सामने खड़ा जोर-जोर से दहाड़ रहा था।

कम्बख्त कब का पका लिया खाना। ये भी नहीं सोचा कि ठंडा हो जाएगा। माँ-बाप ने कुछ सिखाया कि नहीं! समय पढ़के नहीं आई। नालायक!

उस दिन मोहल्ले भर ने देखा समय पर एक भी कार्य नहीं करने वाला आदमी एक औरत को समय का पाठ पढ़ा रहा है।

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