कविता : दि‍वाली है खुशी मनाएं

डॉ. प्रमोद सोनवानी 'पुष्प'
दीप जले 
हर गली-गली
गुपचुप क्यों बैठे हो भाई 
नाचो-गाओ खुशियां बांटों 
दीवाली है घर आई ।
 
दूर गगन में 
झिलमिल-झिलमिल
देखो तारे आए बनठन 
चंदा मामा के बिन देखो 
सूना सा है उनका मन ।
 
प्यारे बच्चे
मन के सच्चे
नाचें-गाएं धूम मचाएं 
डफली-ढोलक-ढोल बजाकर 
दीवाली है खुशी मनाएं ।

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