गीता सार- श्रीमद्भगवद्गीता की भूमिका-1

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भारतीय चिंतन के सार-तत्व को समझने का अच्छा स्रोत

- अनिल विद्यालंकार


 


आध्यात्मिक शास्त्र भगवद्गीता की भूमिका
 
भगवद्गीता भारतीय चिंतन के सार-तत्व को समझने का सबसे अच्छा स्रोत है। 2 पंक्तियों के कुल 700 श्लोकों की इस छोटी-सी पुस्तिका ने पिछले 2,500 वर्षों में भारतीय मानस को सबसे अधिक प्रभावित किया है और इसे सदा ही सर्वमान्य आध्यात्मिक शास्त्र का स्थान दिया गया है। 
 
भारत के सभी प्रमुख चिंतकों ने गीता के संदेश को किसी न किसी रूप में अपना समर्थन दिया है। उनमें से बहुतों ने गीता पर भाष्य लिखे हैं। ऐसा कोई भी भारतीय दार्शनिक, विचारक या धार्मिक नेता नहीं है जिस पर गीता का प्रभाव न पड़ा हो। 
 
पिछली एक शताब्दी में ही बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गांधी, श्री अरविंद और डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसे विचारकों और सामाजिक नेताओं ने न केवल गीता के संदेश को सराहा है अपितु उसकी अपनी-अपनी दृष्टि से व्याख्या भी की है। 
 
गीता का प्रभाव केवल भारत तक ही सीमित नहीं रहा है। इसका संदेश पहले एशिया के देशों में फैला और पिछले 200 वर्षों में यह पश्चिम में भारतीय चिंतन को समझने के लिए एक लोकप्रिय स्रोत का काम करती रही है। संसार की सभी प्रमुख भाषाओं में गीता का अनुवाद हो चुका है।
 
हेनरी थोरो, राफ वाल्डो इमर्सन, रोम्यां रोलां, टीएस इलियट, डब्ल्यूबी यीट्स और आन्द्रे मार्लो जैसे लेखकों, कवियों और विचारकों ने इसके संदेश को सराहा है। रॉबर्ट ऑपनहाइमर और भौतिकी में नोबेल पुरस्कार प्राप्त इर्विन श्रडिंगर जैसे प्रख्यात वैज्ञानिक भी मानते हैं कि विश्व के पीछे छिपे हुए अंतिम सत्य के ज्ञान के लिए गीता की दृष्टि बहुत सहायक है। 
 
धर्म के क्षेत्र में गीता 'सार्वभौम धर्म' का संदेश देती है जिसका पालन सभी मनुष्य कर सकते हैं। दर्शन के क्षेत्र में जिसे एल्डस हक्सले 'शाश्वत दर्शन' (Perenninal Philosophy) कहते हैं उसका सबसे अच्छा प्रतिपादन, उन्हीं के शब्दों में, गीता में ही है। इस प्रकार गीता का संदेश संसार के सभी देशों और सभी कालों के मनुष्यों के लिए उपादेय है। 
 
आधुनिक समय में अपने अस्तित्व से संबंधित संकटों से जूझ रहे मनुष्य के वैयक्तिक और सामाजिक विकास के लिए भी गीता का संदेश बहुत महत्वपूर्ण है। 
 
संसार की सभी संस्कृतियों के उत्थान और पतन का इतिहास लिखने और उसकी विवेचना करने के बाद अपने जीवन के अंतिम भाग में विश्वप्रसिद्ध इतिहासकार आर्नोल्ड टॉयनबी ने कहा कि मनुष्य जाति के सामने उपस्थित इस महान संकट की घड़ी में भारतीय मार्ग ही निस्तार का एकमात्र मार्ग है। गीता इस मार्ग को समझने का एक प्रशस्त उपाय है।
 
गीता की पृष्ठभूमि महाभारत का युद्ध है, जो निकट संबंधियों के बीच लड़ा गया था। युद्ध प्रारंभ होने से ठीक पहले उस युद्ध के प्रधान नायक अर्जुन के मन में न केवल प्रस्तुत युद्ध के विषय में अपितु मानव जीवन के अर्थ के विषय में भी कुछ गंभीर प्रश्न उठते हैं जिन्हें वह अपने मित्र, गुरु और सारथी श्रीकृष्ण के सम्मुख रखता है। 
 
ऐसा प्राय: होता है कि मनुष्य के सामने जब गंभीर संकट की घड़ी आती है, तब जीवन से संबंधित अनेक प्रश्न उसके लिए तीव्र अर्थवत्ता धारण कर लेते हैं। गीता अर्जुन और श्रीकृष्ण के बीच हुए संवाद का आलेख है और इसमें मानव जीवन के सभी पक्षों को गहनतम स्तर पर देखा गया है।
 
गीता महाभारत का अंग है, पर इसकी रचना महाभारत के लिखे जाने के बाद हुई लगती है। गीता के मूल लेखक का नाम ज्ञात नहीं है। जो भी हो जिसने भी गीता की रचना की वह संसार का एक सबसे बड़ा जीनियस था। गीता में उस अज्ञात रहस्यवादी, दार्शनिक कवि ने मनुष्यमात्र के प्रतीक अर्जुन और परमात्मा के अवतार श्रीकृष्ण के संवाद के माध्यम से मनुष्य-जीवन के संबंध में गहनतम दृष्टि दी है। 
 
(जारी)
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