देवउठनी ग्यारस : जानिए 8 विशेष बातें...

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दीपावाली के 11 दिन बाद देव प्रबोध उत्सव और तुलसी के विवाह को देवउठनी ग्यारस कहते हैं। एकादशी को यह पर्व बड़े उत्साह से मनाया जाता है। देव प्रबोधिनी एकादशी का महत्व शास्त्रों में उल्लेखित है। एकादशी व्रत और कथा श्रवण से स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
 

 
* क्षीरसागर में शयन कर रहे श्री हरि विष्णु को जगाकर उनसे मांगलिक कार्यों की शुरूआत कराने की प्रार्थना की जाएगी। 

 
 

 


* देवउठनी ग्यारस पर मंदिरों व घरों में भगवान लक्ष्मीनारायण की पूजा-अर्चना की जाएगी। 
 

 

 

* मंडप में शालिग्राम की प्रतिमा एवं तुलसी का पौधा रखकर उनका विवाह कराया जाएगा। 
 
* मंदिरों के व घरों में गन्नों के मंडप बनाकर श्रद्धालु भगवान लक्ष्मीनारायण का पूजन कर उन्हें बेर,चने की भाजी, आंवला सहित अन्य मौसमी फल व सब्जियों के साथ पकवान का भोग अर्पित करेंगे।
 
 

 


* इसके बाद मण्डप की परिक्रमा करते हुए भगवान से कुंवारों के विवाह कराने और विवाहितों के गौना कराने की प्रार्थना की जाएगी। 
 
* प्रबोधिनी एकादशी के दिन शालिग्राम, तुलसी व शंख का पूजन करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
 

 
* गोधूलि बेला में तुलसी विवाह करने का पुण्य लिया जाता है। 

 
* दीप मालिकाओं से घरों को रोशन किया जाएगा और बच्चे पटाखे चलाकर खुशियां मनाएंगे।

 
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