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Dhanu sankranti 2025: धनु संक्रांति कब है, क्या है इसका महत्व, पूजा विधि और कथा?

WD Feature Desk
शनिवार, 6 दिसंबर 2025 (13:11 IST)
Dhanu sankranti 2025: सूर्य के धनु राशि में जाने को धनु संक्रांति कहते हैं। सूर्य जब भी बृहस्पति की राशि धनु या मीन में गोचर करने लगता है तब से खरमास या मलमास प्रारंभ हो जाता है। इस दौरान सभी तरह के मांगलिक शुभ कार्य बंद रहते हैं। मलमास में नामकरण, विद्या आरंभ, कर्ण छेदन, अन्न प्राशन, उपनयन संस्कार, विवाह संस्कार, गृहप्रवेश तथा वास्तु पूजन आदि मांगलिक कार्यों को नहीं किया जाता है। इस बार 16 दिसंबर 2025 को सूर्य धनु राशि में प्रवेश कर रहे हैं।
 
धनु संक्रांति फलम- Dhanu Sankranti Falam: इस संक्रांति के कारण सरकारों और सरकारी कर्मचारियों पर संकट के बादल छा सकते हैं। दो राष्ट्रों के बीच संघर्ष बढ़ सकता है। वस्तुओं की लागत में तेजी नहीं आएगी। हालांकि भय और चिन्ता का माहौल पूरे माह बने रहने की संभावना रहेगा। लोग खांसी, सर्दी जुकाम और ठण्ड से पीड़ित होंगे। इस वर्ष कम बारिश की आशंका व्यक्त की जा रही है। 
 
धनु संक्रांति का महत्व- dhanu Sankranti: यह कहा जाता है कि धनु राशि में सूर्य के आ जाने से मौसम में परिवर्तन हो जाता है और देश के कुछ हिस्सों में बारिश होने के कारण ठंड भी बढ़ सकती है। इस दिन के बारे में ऐसी मान्यता है कि यह दिन बेहद ही पवित्र होता है ऐसे में जो कोई इंसान इस दिन विधिवत पूजा करते हैं उनके जीवन के सभी कष्ट अवश्य दूर होते हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। 
 
इस संक्रांति को हेमंत ऋतु शुरू होने पर मनाया जाता है। इसी संक्रांति से खरमास भी प्रारंभ होता है। खरमास के लगते ही मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है। मीन संक्रांति होने पर भी खरमास लगता है। सूर्य जब-जब गुरु की राशि यानी धनु राशि में रहता है तब तक खरमास माना जाता है। इस समय मांगलिक कार्य वर्जित रहते हैं। खरमास के प्रतिनिधि आराध्य देव भगवान विष्णु हैं। इसलिए इस माह के दौरान भगवान विष्णु की पूजा नियमित रूप से करना चाहिए। धनु संक्रांति के दिन भगवान सत्यनारायण की कथा का पाठ किया जाता है। भूटान और नेपाल में इस दिन जंगली आलू जिसे तारुल के नाम से जाना जाता है, उसे खाने का रिवाज है। जिस दिन से ऋतु की शुरुआत होती है उसकी पहली तारीख को लोग इस संक्रांति को बड़े ही धूम-धाम से मनाते हैं।
 
धनु संक्रांति की कथा- Dhanu Sankranti Story: संस्कृत में गधे को खर कहा जाता है। पौराणिक ग्रंथों में वर्णित खरमास की कथा के अनुसार भगवान सूर्यदेव सात घोड़ों के रथ पर सवार होकर लगातार ब्रह्मांड की परिक्रमा करते रहते हैं। उन्हें कहीं पर भी रूकने की इजाजत नहीं है। मान्यता के अनुसार उनके रूकते ही जन-जीवन भी ठहर जाएगा। लेकिन जो घोड़े उनके रथ में जुड़े होते हैं वे लगातार चलने और विश्राम न मिलने के कारण भूख-प्यास से बहुत थक जाते हैं। उनकी इस दयनीय दशा को देखकर सूर्यदेव का मन भी द्रवित हो गया। 
 
वे उन्हें एक तालाब के किनारे ले गए, लेकिन उन्हें तभी यह ध्यान आया कि अगर रथ रूका तो अनर्थ हो जाएगा। लेकिन घोड़ों का सौभाग्य कहिए कि तालाब के किनारे दो खर मौजूद थे। भगवान सूर्यदेव घोड़ों को पानी पीने और विश्राम देने के लिए छोड़ देते हैं और खर अर्थात गधों को अपने रथ में जोत देते हैं। अब घोड़ा-घोड़ा होता है और गधा-गधा, रथ की गति धीमी हो जाती है फिर भी जैसे-तैसे एक मास का चक्र पूरा होता है तब तक घोड़ों को विश्राम भी मिल चुका होता है, इस तरह यह क्रम चलता रहता है और हर सौर वर्ष में एक सौर खर मास कहलाता है।
 
धनु संक्रांति की पूजा- Dhanu Sankranti Puja: 
1. सत्यनारायण भगवान की पूजा: इस दिन भगवान सत्यनारायण की षोडष पूजा करें। पूजन में शुद्धता व सात्विकता का विशेष महत्व है
2. इस दिन प्रात:काल स्नान-ध्यान से निवृत हो भगवान का स्मरण करते हुए भक्त व्रत एवं उपवास का पालन करते हुए भगवान का भजन व पूजन करते हैं।
3. नित्य कर्म से निवृत्त होने के बाद अपने श्रीहरि विष्णु की मूर्ति या चि‍त्र को लाल या पीला कपड़ा बिछाकर लकड़ी के पाट पर रखें। 
4. मूर्ति को स्नान कराएं और यदि चित्र है तो उसे अच्छे से साफ करें।
5. पूजन में देवताओं के सामने धूप, दीप अवश्य जलाना चाहिए। 
6. देवताओं के लिए जलाए गए दीपक को स्वयं कभी नहीं बुझाना चाहिए।
7. फिर देवताओं के मस्तक पर हलदी कुंकू, चंदन और चावल लगाएं। 
8. फिर उन्हें हार और फूल चढ़ाएं। फिर उनकी आरती उतारें। 
9. पूजन में अनामिका अंगुली (छोटी उंगली के पास वाली यानी रिंग फिंगर) से गंध (चंदन, कुमकुम, अबीर, गुलाल, हल्दी, मेहंदी) लगाना चाहिए।
10. पूजा करने के बाद प्रसाद या नैवेद्य (भोग) चढ़ाएं। 
11. ध्यान रखें कि नमक, मिर्च और तेल का प्रयोग नैवेद्य में नहीं किया जाता है। 
12. प्रत्येक पकवान पर तुलसी का एक पत्ता रखा जाता है। 
13. पूजा में उन्हें केले के पत्ते, फल, सुपारी, पंचामृत, तुलसी, मेवा, इत्यादि भोग के तौर पर अर्पित जाता है। 
14. अंत में उनकी आरती करके नैवेद्य और चरणामृत का प्रसाद सभी में बांटा जाता है
15. पूजा के बाद सत्यनारायण की कथा के बाद माता लक्ष्मी, भगवान शिव, और ब्रह्मा जी की आरती की जाती है।

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