भक्त बिना भगवान अधूरे

Webdunia
-पूज्य पांडुरंग शास्त्री आठवले
शंकर का शिवालय जिस तरह बिना नंदी के नहीं होता है उसी तरह श्रीराम के देवालय की पूर्णता हनुमान की मूर्ति के बिना नहीं होती। भक्त बिना भगवान अधूरे हैं, इस भाव का दर्शन इस घटना से होता है।
 
रावण की लंका में जाने के लिए भगवान राम को पुल बाँधना पड़ा जबकि हनुमानजी कूदकर पार कर गए। हनुमान की कूद से भक्त की महिमा बढ़ गई। जिस तरह पुत्र के पराक्रम से बाप आनंदित होता है, शिष्य से पराभूत होने में गुरु गौरव का अनुभव करते हैं, उसी तरह भक्त की महिमा वृद्धि में प्रभु प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। 
 
जिसका चिंतन भगवान स्वयं करें ऐसे महापुरुषों में हनुमान एक हैं। मानव तो उनका चिंतन करेगा ही। आज हजारों वर्षों से जनसमुदाय के हृदय में राम जैसा ही आदरणीय स्थान हनुमान को प्राप्त हुआ है। उत्तरकांड में राम हनुमान को प्राज्ञ, धीर, वीर, राजनीति- निपुण वगैरह विशेषणों से संबोधित करते हैं। इससे हम उनकी उच्चतम योग्यता की कल्पना कर सकते हैं। 
 
हनुमान सीता की शोध करके आए तब श्री राम कहते हैं- 'हनुमान! तेरे मुझ पर अगणित उपकार हैं, इसके लिए मेरे एक-एक प्राण निकालकर दूँगा तो भी कम होगा क्योंकि तेरा प्रेम मेरे लिए पंचप्राणों से भी अधिक है, इसलिए मैं तुझे सिर्फ आलिंगन ही देता हूँ- 'एकैकस्योपकारस्य प्राणान्‌ दास्यामि ते कपे।' राम कहते हैं कि हनुमान ने ऐसा दुष्कर कार्य किया है कि लोग जिसे स्वप्न में भी नहीं कर सकते।
 
धन्य है हनुमान कि वानर होने पर भी जिनको प्रभु ने स्वमुख से 'पुरुषोत्तम' की उपाधि प्रदान करके अपने साथ स्थान दिया।
 
इंद्रजीत जैसे बाह्य शत्रु को तो इंद्रियजित हनुमान ने जीता ही परंतु मन के अंदर रहे हुए काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर आदि असुरों पर भी उन्होंने विजय प्राप्त की थी। सीता की खोज के लिए जब वे लंका में गए तब अनेक सुंदर स्त्रियों को उन्होंने देखा, परंतु उनका मन विचलित नहीं हुआ। 
 
'भगवान राम जैसा खजाना जिसे प्राप्त हुआ हो उसे सांसारिक सुख- संपत्ति का लोभ कैसे रह सकता है? मैंने जो कुछ भी किया, वह राम की शक्ति के कारण ही हुआ है' ऐसी अंतःकरण की भावना हो तो मद और अभिमान आ ही नहीं सकते।
 
हनुमान बल और बुद्धि से संपन्न थे। उनको मानसशास्त्र, राजनीति, साहित्य, तत्वज्ञान आदि शास्त्रों का गहन ज्ञान था। उन्हें ग्यारहवें व्याकरणकार और रुद्र का अवतार माना जाता है। उनमें जबरदस्त विद्वत्ता थी। वे 'बुद्धमतां वरिष्ठम्‌' थे। उनकी वक्तृत्व-शक्ति भी अजब थी। हनुमान की वाणी से मानों ज्ञाननिष्ठ वैचारिक प्रवाह और सरल होने पर भी अर्थगंभीर भाषा प्रवाह बह रहा हो ऐसा सुनने वालों को लगता था।

हनुमान का मानसशास्त्र का बहुत ही गहरा अध्ययन था। उनकी कार्यनिपुणता और विद्वत्ता पर राम का अत्यधिक विश्वास था। विभीषण (शत्रु राज्य का सचिव और रावण का भाई) राम के पास आता है। तब वह किस हेतु से आया है, उसे स्वपक्ष में लेना या नहीं?

इसलिए राम के सलाह पूछने पर सुग्रीव से लेकर सभी लोग ऐसे आपत्तिकाल में विभीषण को स्वीकार करने को 'न' कहते हैं। सबकी सुनने के बाद राम ने हनुमान का अभिप्राय पूछा। हनुमान ने तुरंत उसे स्वीकार करने को कहा। राम ने हनुमान का कहा मान्य किया क्योंकि मानव को परखने की हनुमान की शक्ति को राम जानते थे।

हनुमान स्वयं को राम का दास मानते थे। हनुमान अर्थात दास्य भक्ति का आदर्श। हनुमान अर्थात सेवक और सैनिक का संयोग, भक्ति और शक्ति का सुभग संगम! राम की सेवा करने में यदि प्राण देने की आवश्यकता पड़े तो भी उनकी तैयारी थी।

ऐसे तो रामायण में हनुमान की तरह रावण भी बली था लेकिन रावण का बल भोगों के लिए था। एक ने रामपत्नी सीता को भगाया, दूसरे ने उसे वापस ढूँढ निकाला। भक्तिशून्य शक्ति मानव को राक्षस बनाती है जबकि भक्तियुक्त शक्ति मानव को देवत्व प्रदान करती है। इस बात का सुंदर दिग्दर्शन वाल्मीकि ने रामायण के इन्हीं दो पात्रों के चरित्र-चित्रण से किया है।

सीता की खोज का कार्य भी राम ने जितने विश्वास से उन पर सौंपा था, उन्होंने उतने ही विश्वास से उस कार्य को पूर्ण किया। सुंदरकांड हनुमान की लीलाओं से भरा हुआ है। भगवद् भक्त की लीला प्रभु को और तपःस्वाध्यायनिरत ऋषियों को भी सुंदर लगती है। इसीलिए जिस कांड में हनुमान की लीला है उसका नाम 'सुंदरकांड' रखा गया है।

हनुमानजी स्वतंत्र बुद्धि और प्रज्ञाशक्ति वाले थे। अशोक वाटिका में आत्महत्या के लिए प्रवृत्त हुई सीता को प्रभु राम का समाचार देने से पहले उन्होंने वृक्ष के पीछे खड़े रहकर ईक्ष्वाकु कुल का वर्णन करना आरंभ किया। इस तरह हनुमान ने मानसिक भूमिका तैयार करके सीता के हृदय में विश्वास निर्माण किया। उसके बाद ही रामदूत के रूप में उन्होंने अपना परिचय दिया।

लंकादहन हनुमान की मर्कटलीला नहीं थी। लेकिन राजकारण-विशारद व्यक्ति का पूर्ण विचार से किया हुआ कृत्य था। लंका दहन में पूर्ण राजनीति है, उसके द्वारा उन्होंने लंका की राक्षस प्रजा का आत्मविश्वास खत्म किया। लंकादहन करके हनुमान ने युद्ध का आधा काम पूरा कर दिया।

हनुमान राम के पूर्ण भक्त थे। वे तीक्ष्ण बुद्धिमान-प्रत्युत्पन्नमति थे। राम का उनके प्रति पूर्ण विश्वास था। रावण की मृत्यु के बाद सीता को संदेश देने के लिए राम हनुमान को भेजते हैं क्योंकि हर्ष का समाचार सीधे मिले तो शायद हृदय बंद होने की संभावना होती है।

अयोध्या में प्रवेश करने से पहले भरत के चेहरे पर राम के आगमन से विकार होते हैं या नहीं यह देखने के लिए भी हनुमान को ही भेजते हैं। अर्थात इन नाजुक प्रसंगों में महत्वपूर्ण कार्य पूर्ण बुद्धि चलाकर हनुमान ही कर सकते थे। नाजुक से नाजुक और कठोर से कठोर काम भी हनुमान सफलता से पूर्ण करते थे।

हनुमान का दासभाव भी उत्कृष्ट है। राम हनुमान से पूछते हैं- 'तुझे क्या चाहिए?' तब 'मेरी आपके प्रति प्रेमभक्ति कम न हो और राम के व्यतिरिक्त दूसरे के प्रति भाव निर्माण न हो इतना ही चाहिए' ऐसा जवाब उन्होंने दिया है। जब तक राम कथा है तब तक हनुमान भी अमर हैं।
Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

मार्गशीर्ष अमावस्या पर पितरों को करें तर्पण, करें स्नान और दान मिलेगी पापों से मुक्ति

जानिए क्या है एकलिंगजी मंदिर का इतिहास, महाराणा प्रताप के आराध्य देवता हैं श्री एकलिंगजी महाराज

Saturn dhaiya 2025 वर्ष 2025 में किस राशि पर रहेगी शनि की ढय्या और कौन होगा इससे मुक्त

Yearly Horoscope 2025: वर्ष 2025 में 12 राशियों का संपूर्ण भविष्‍यफल, जानें एक क्लिक पर

Family Life rashifal 2025: वर्ष 2025 में 12 राशियों की गृहस्थी का हाल, जानिए उपाय के साथ

सभी देखें

धर्म संसार

Margshirsha Amavasya 2024: मार्गशीर्ष अमावस्या पर आजमाएं ये 5 उपाय, ग्रह दोष से मिलेगा छुटकारा और बढ़ेगी समृद्धि

संभल में जामा मस्जिद या हरिहर मंदिर? जानिए क्या है संपूर्ण इतिहास और सबूत

जानिए किस सेलिब्रिटी ने पहना है कौन-सा रत्न और क्या है उनका प्रभाव

Aaj Ka Rashifal: ईश्वर की कृपा से आज इन 5 राशियों को मिलेगा व्यापार में लाभ, पढ़ें 29 नवंबर का राशिफल

29 नवंबर 2024 : आपका जन्मदिन

अगला लेख