खजुराहो के प्रांगण में काम दर्शन के नशे से सरोबार हुए श्रोता

Webdunia
मंगलवार, 16 सितम्बर 2014 (15:33 IST)
काम शिल्पों के लिए चर्चित खजुराहो के प्रांगण में आज चौथे दिन रामचरितमानस संत मोरारी बापू ने एक अनोखे रस की रचना कर दी। काम दर्शन को समझने का सलीका सिखाया। काम के गूढ़ सत्य पर आज उनकी चर्चा में गजल, सौंदर्य एवं नशे का अद्‍भुत मिश्रण था। उसमें विरह, वफा एवं श्रृंगार का भी पुट था। 
 
वानगी देखिए। मोरारी बापू कहते हैं- तुलसी की हर चौपाई गजल है। उन्होंने अहमद फराज की स्मृति में कल शाम वहीं लगी महफिल की चर्चा करते हुए कहा- पीने का सलीका हो तो फिर कौन ऐसी चीज है, जिसमें शराब नहीं है, रस नहीं है। आज काम दर्शन पर उनकी तकरीर में वात्सायान, चारवाक, ओशो रजनीश के साथ-साथ महान मनोवैज्ञानिक फ्रायड का भी जिक्र हुआ। 
 
उन्होंने कहा- काम एक गूढ़ विषय है। केवल विचार व दर्शन को सुनकर इस काम सत्य को समझ पाना मुश्किल है। सदियों से काम पर चिंतन चल रहा है। मुझे इस पर बोलने में 55 साल लग गए। काम एक जीवन सत्य है, जिसका दर्शन आसान नहीं है। भीष्म पितामह को कितने साल लगे काम का जीवन सत्य समझने और कहने में। वह भी कब कहा जब मृत्यु शैय्या पर लहूलुहान सोए थे। 
 
काम के सत्य को उन्होंने एक बच्चे के अंगूठा चूसने का उदाहरण देते हुए समझाया। वे कहते हैं- एक बच्चा जब अंगूठा चूसता है तो उसे वहां दूध नहीं मिलता, केवल एक आश्वासन है कि इससे पेट नहीं भर जाएगा। उसे लाख रोको वह नहीं मानता लेकिन जैसे ही मां उसे अपने सीने से लगाती है, वह अंगूठा चूसना छोड़ देता है। बच्चे की इस चेष्‍टा में एक शास्त्र है। मोरारी बापू कहते हैं- राम रस का मूल तत्व मिलने तक काम रस का अंगूठा चूसना ही पड़ेगा। 
 
उन्होंने रामकथा के मंच पर महान गजलकार अहमद फराज की गजल संध्या पर जिक्र कर अपने प्रवचन में नशे का पुट घोल दिया। मोरारी बापू ने उनकी कुछ अच्छी गजलों का पाठ भी किया। उनकी गजलों में उन्होंने काम दर्शन की झांकी पेश की। मसलन, 'सलीका हो अगर भींगी आंखों को पढ़ने का फराज, तो बहते हुए आंसू अक्सर बात करते हैं।' 'ये वफा तो उन दिनों हुआ करती थी फराज जब मकान कच्चे और आदमी सच्चे होते थे।' 'अब उसे रोज न सोचूं तो बदन टूटता है फराज, एक उम्र हो गई उसकी याद का नशा करते करते।' 
 
उन्होंने कहा- भगवान का नाम लेने से श्राप तत्काल खत्म होता है। अष्‍टायोग करने की जरूरत नहीं पड़ती। हरिनाम लेने से काम से समाधि तक का मार्ग अपने आप प्रशस्त हो जाएगा। राम रस के अमृत वचन से मन क्रमश: धीरे-धीरे निर्मल होता चला जाता है। वे कहते हैं- राम कथा एक शॉपिंग मॉल है जो पसंद आए ले लो, जो न पसंद आए उसे छोड़ दो। 
 
काम कितना गूढ़ सत्य है इसका पता इसी बात से चल जाता है कि मृत्यु शैय्या पर कराह रहे अपने दादा भीष्म पितामह से युधिष्ठिर ने काम दर्शन पर प्रश्न पूछे। दादा पोते से काम दर्शन पूछ रहा है। 
 
युधिष्ठिर ने सवाल किया- पितामह, विषय भोग में लिप्त दो में से काम रस का आनंद किसे अधिक मिलता है। मर्यादा भंग न हो इसीलिए दादा ने एक प्रसंग के जरिए इसे युधिष्ठिर को समझाया। 
 
पितामह ने कहा- एक राज्य के राजा ने अपने 100 पुत्र होने पर यज्ञ कराया। गलती यह कर दी कि इंद्र का अनादर कर दिया। इंद्र ने क्रुद्ध होकर उसके 100 पुत्रों को मार दिया और राजा को सरोवर में डुबो दिया, जहां से वह एक अतिसुंदर स्त्री के रूप में प्रकट हुई। वह तपोवन में घूम रही थी कि एक महात्मा उस पर मोहित हो गए। 
 
उन्होंने यह रेखांकित किया कि हर काम करने का सलीका होना चाहिए। काम रस पीने का भी एक सलीका हो तो कोई बात नहीं। मोरारी बापू ने कहा- मानस काम दर्शन पर बार-बार चर्चा होनी चाहिए। काम पर चिंतन सनातन है। आज तक उस पर नए-नए विचार आ रहे हैं। जीवन के इस सत्य को महसूस करने के लिए महापुरुषों को पर काया में प्रवेश करना पड़ा। काम जीवन का एक कटु सत्य है, जिससे समझने के लिए बड़ी चेष्टा की जरूर‍त होती है। काम दर्शन पर एक कथा पर्याप्त नहीं है, इस पर बार-बार चर्चा की जरूर‍त है। 
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