तस्मात् सर्वगतं ब्रह्मा नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम्। -गीता 3.15 यज्ञ में सर्वव्यापी सर्वांतर्यामी परमात्मा का सदैव वास होता है।
यज्ञो वै देवानामात्मा। -शतपथ ब्राह्मण 9.3.2.7 सब देवताओं की आत्मा यह यज्ञ है।
प्रांचं यज्ञं प्रणयता सखायः। -ऋग्वेद 10/101/2 प्रत्येक शुभकार्य को यज्ञ के साथ आरंभ करो।
सर्वा बाधा निवृत्यर्थं सर्वान् देवान् यजेद् बुधः। -शिवपुरा ण सभी बाधाओं की निवृत्ति के लिए बुद्धिमान पुरुषों को देवताओं की यज्ञ के द्वारा पूजा करनी चाहिए।
यज्ञो वै श्रेष्ठतमं कर्म। -शतपथ ब्राह्मण 1.7.1.5 यज्ञ ही संसार का सर्वश्रेष्ठ शुभ कार्य है।
प्रस्तुति : संजय शर्म ा