इंदौर में राष्ट्रीय आंदोलन और राजनैतिक दल, शिवाजी और गणेश उत्सव की आड़ में राष्ट्रीय आंदोलन

अपना इंदौर
महाराजा शिवाजीराव ने अपने अल्प वयस्क पुत्र के पक्ष में 1903 में होलकर गादी त्याग दी थी। उस समय प्रशासन का संचालन कौंसिल ऑफ रीजेंसी द्वारा चलाया जा रहा था। पुलिस कमिश्नर भी एक ब्रिटिश अधिकारी था। ऐसी विपरीत परिस्थितियों में भी इंदौर नगर में राष्ट्रीय आंदोलन का उभरना एक चमत्कार ही था।
 
महाराजा शिवाजीराव के शासनकाल से ही इंदौर में राष्ट्रवादी आंदोलन प्रारंभ हो गया था। इंदौर के नागरिक 'शिवाजी उत्सव' व 'गणेश उत्सव' को ब्रिटिश अत्याचारों से मुक्ति पाने हेतु प्रतिज्ञा दिवस के रूप में मनाने लगे थे। 1907 का शिवाजी उत्सव अंगरेज कमिश्नर की आंखों में कांटे की तरह चुभ रहा था। उसने इंदौर के राज्य कारभारी (प्रधानमंत्री) श्री नानकचंदजी पर इस बात के लिए दबाव डाला कि राज्य की ओर से सूचना पत्र जारी कर शिवाजी उत्सव को मनाने को प्रतिबंधित किया जाए।
 
कारभारी को विवश होकर अधिसूचना जारी करना पड़ी, जिसका मूल पाठ इस प्रकार है 'कम उम्र के कुछ लोगों ने पिछले सालशिवाजी उत्सव इंदौर में कुछ हद तक मनाया। इसलिए श्रीमंत महाराजा होलकर की रय्यत और नौकरों को इतल्ला दी जाती है कि इस प्रकार के जलसे, जो गए वर्ष की मुआफिक पोलिटिकल विषयों पर अपनेअपने मत प्रसिद्ध करने के मौकों के तौर से काम में लाए जाते हैं, मुनासिब नहीं हैं। हर एक आदमी को चाहे वह इंदौर स्टेट की रय्यत हो या किसी और जगह की, आगाही दी जाती है कि जब तक कि वे इंदौर की रियासत में रहें, उनको ऐसे जलसों को खड़ा नहीं करना चाहिए और न उनमें शरीक होना चाहिए। इस हुकुम की अदुली का परिणाम गुन्हागारों के वास्ते बहुत बुरा होगा।' इंदौर ता. 30 अप्रैल 1908 ई.। ननानकचंद कारभारी, रियासत इंदौर
 
इस प्रकार के प्रतिबंधात्मक आदेश के साथ ही राज्य के गुप्तचर विभाग को अत्यंत संवेदनशील बनाया गया, जो नगर में होने वाली हर छोटीबड़ी घटना की जानकारी ब्रिटिश अधिकारी तक पहुंचाता था। सेंट्रल प्रॉवीसेंस के पुलिस अधिकारी मिस्टर सी.एम. सेग्रिम की सेवाएं प्राप्त कर उन्हें इंदौर का पुलिस कमिश्नर बनाया गया था। महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी नेता बाल गंगाधर तिलक ने गणपति उत्सव को जो स्वरूप दिया था, वह पूना के बाद इंदौर में सर्वाधिक निखरा। 30 जुलाई 1908 ई. को इंदौर में गणपति उत्सव प्रारंभ हुआ, जो 4 अगस्त तक चलता रहा। गणपति उत्सव के तमाम आयोजनों के सूत्र 'ज्ञान प्रकाश मंडल' नामक संस्था ने अपने हाथों में ले लिए थे। इस संस्था के अधिकांश कार्यकर्ता स्कूल, महाविद्यालय के विद्यार्थी व कुछ राष्ट्रवादी शासकीय कर्मचारी थे। होलकर प्रशासन पर पूरी तरह ब्रिटिश प्रभाव था, तब भी शासकीय शिक्षण संस्थाओं में अध्ययन कर रहे विद्यार्थियों व शासकीय कर्मचारियों ने जो साहस उस समय दिखाया, वह अभूतपूर्व घटना थी।
 
सरकारी कर्मचारी भी सक्रिय थे राष्ट्रीय आंदोलन में
 
इंदौर में 'शिवाजी उत्सव' और 'गणपति उत्सव' का आयोजन अंगरेजों के लिए भारी चिंता का विषय बनता जा रहा था। इंदौर के पुलिस कमिश्नर सी.एम. सेग्रिम ने भारत सरकार को गणपति उत्सव की गोपनीय रिपोर्ट प्रेषित की थी। हस्तलिखित यह रिपोर्ट राष्ट्रीय अभिलेखागार, नई दिल्ली की फाइल फॉरेन डिपार्टमेंट, इंटरनलबीफरवरी 1909 क्र. 200201 में सुरक्षित है। 8 सितंबर 1908 को इंदौर से प्रेषित रिपोर्ट में कमिश्नर लिखता है
 
'इंदौर में गणपति उत्सव रविवार (30 जुलाई 1908) को बड़े उत्साह के साथ प्रात: 9 बजे जूना तोपखाना स्थितईस्टर्न ट्रेडिंग कंपनी के अहाते से एक जुलूस के रूप में प्रारंभ हुआ। यह जुलूस इमली बाजार स्थित बालाजी मंदिर की ओर बढ़ा। इस जुलूस के लिए हाथी, बैनर्स, झंडे तथा बैंड इत्यादि बुले साहब की ओर से दिए गए थे। उस जुलूस में लगभग 400 लोग सम्मिलित थे। सर्वश्री भिड़े, भावे, ओक, माते जो पीडब्ल्यूडी के कर्मचारी थे, जुलूस में स्वयं 'शिवाजी की जय', 'तिलक की जय', 'वंदे मातरम्‌' इत्यादि नारे लगा रहे थे व जनता से लगवा रहे थे। यह जुलूस दो घंटे में बालाजी मंदिर पहुंच गया। संध्या को वहां वेदपाठ का कार्यक्रम रखा गया।
 
जुलाई 31 से अगस्त 4 तक प्रतिदिन प्रात: 8 बजे से 12 बजे तक हरि कथा व पुराण इत्यादि का वाचन होता था। उक्त धार्मिक कार्यों में राष्ट्रवादी प्रसंगों पर प्रकाश डाला जाता था। श्री टिल्लू शास्त्री (जो इमली बाजार में रहते थे तथा इंदौर में मदरसा में शिक्षक रह चुके थे) ने अपने भाषण में ब्रिटिश शासन से मुगल शासन को श्रेष्ठ बताते हुए फिरंगियों को भारत से भगा देने का आह्वान किया था। उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि मुगल साम्राज्य के अंतर्गत हमें पर्याप्त भोजन तो उपलब्ध होता था। अब रातदिन शस्त्रों के आतंक के बीच जीने के बावजूद हमें पर्याप्त अन्न नहीं मिलता और अन्यान्य तरीकों से हमें सताया जाता है।
 
इन अवसरों पर 200 से 300 लोगों का समूह एकत्रित होता था। कथा और पुराण की समाप्ति के बाद प्रतिदिन एकत्रित जन समुदाय ऊंची आवाज में नारे लगाता था 'वंदे मातरम्‌', 'शिवाजी की जय', 'अरविंद की जय', 'तिलक की जय' इत्यादि।
 
इस तरह की बैठकों की व्यवस्था व नियंत्रण विद्यार्थियों द्वारा किया जाता था, जो अपने गले में पट्टा डाले रहते थे। पुलिस को गुमराह करने के उद्देश्य से 'ज्ञान प्रकाश मंडल' के कार्यकर्ताओं ने छपे हुए सूचना पत्रों में से प्रवचन देने वालों के नाम निकाल दिए। मंदिर पर टंगे हस्तलिखित सूचना पत्र पर लिखा गया था कि महेश्वर के दत्त बाबा हरि कथा का वाचन करेंगे, जबकि उन्होंने सोमवार 31 अगस्त व 2 सितंबर बुधवार को वाचन किया। (वे एक स्कूल शिक्षक हैं, जो इंदौर के एक विद्यालय में अध्यापन करते हैं व उनका असली नाम पांडे है)। वास्तव में वह दत्त बाबा नहीं है।'
 
उक्त रिपोर्ट सिद्ध करती है कि इंदौर के बुद्धिजीवी, जिनमें कुछ राजकीय सेवक भी थे, भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को सक्रिय करने के लिए खुलेआम मैदान में आ गए थे और उन्होंने राष्ट्र की आजादी की खातिर अपनीरोजीरोटी की चिंता भी छोड़ दी थी।
 
ज्ञान प्रकाश मंडल की भूमिका उल्लेखनीय
 
इंदौर में राष्ट्रीयता की भावना को फैलाने में ज्ञान प्रकाश मंडल की महती भूमिका रही। गणेश उत्सव के संगठन, संचालन व व्यवस्था का संपूर्ण दायित्व ज्ञान प्रकाश मंडल ने अपने कंधों पर ले लिया था और इसीलिए यह आयोजन सफल भी रहा। पुलिस कमिश्नर ने अपने 8 सितंबर 1908 के पत्र में लिखा था
 
'निम्नलिखित समूहों ने विदेशी के बहिष्कार के गीत गाए थे (1) न्यू बाल सन मित्र समाज मेला, जो जूना तोपखाना में पुराने मुसाफिरखाने के पीछे है, (2) होलकर महाविद्यालय के लगभग 16 विद्यार्थी, (3) ज्ञान प्रकाश मंडल के स्वयंसेवक। बाल सन मित्र समाज के सदस्यों में से प्रमुख नाम इस प्रकार हैं : (1) व्यवस्थापक श्री तुकाराम, ट्रांसपोर्ट ऑफिस में क्लर्क (2) बाबूराव, स्टेट आर्मी में क्लर्क (3) छोटे भैया, पी.डब्ल्यू.डी. सिटी डिवीजन में क्लर्क (4) देशपांडे गायक सिटी स्कूल में कक्षा 6 का विद्यार्थी।
 
ज्ञान प्रकाश मंडल मेला के स्वयंसेवक (1) कोतवाल, सिटी स्कूल का विद्यार्थी (2) मोडक (3) पड़ालकर, शॉक फैक्टरी का स्वामी (4) कारनेरकर (5) भट्ट (6) शिरालकर (7) देशपांडे व अन्य सभी सिटी स्कूल केविद्यार्थी। होलकर महाविद्यालय के विद्यार्थी (1) भोपटकर एफ.ए. (2) चंदवासकर एफ.ए. (3) दांडेकर, बी.ए. (4) देव, एफ.ए. (डॉ. देव का भाई) (5) दुराफे, बी.ए. (6) शेवड़े, बी.ए. तथा बी.ए. एवं एफ.ए. कक्षाओं के अन्य विद्यार्थी।'
 
उक्त कार्यकर्ताओं ने रातदिन परिश्रम करके, तमाम प्रतिबंधों व बाधाओं के बावजूद इंदौर नगर में गणपति उत्सव धूमधाम से मनाया और राष्ट्रीयता की भावना को जनजन तक पहुंचाने का प्रयास किया।
 
इंदौर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 1921 में स्थापित
 
इंदौर के राजनैतिक इतिहास में यह एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि नगर में कपड़ा मिलों की स्थापना के कारण हजारों श्रमिक सामान्य हितों के लिए संगठित होने लगे थे और उनमें राष्ट्रीय आंदोलन के परिप्रेक्ष्य में नई चेतना जागृत होने लगी थी। इंदौर में 1908 में ही राष्ट्रवादी गतिविधियां सक्रिय हो उठी थीं। गणपति उत्सव के बहाने नगर में प्राध्यापक, विद्यार्थी, बुद्धिजीवी, शासकीय कर्मचारी व सामान्य नागरिक सभी राष्ट्रवादी गतिविधियों से जुड़ गए थे, लेकिन आश्चर्य की बात है कि उस समय तक नगर में कोई राजनीतिक संगठन नहीं बन पाया था।
 
अपनी स्थापना के लगभग 35 वर्षों बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की गतिविधियां इंदौर नगर में सक्रिय हुईं। इंदौर रेसीडेंसी क्षेत्र व छावनी इलाका अंगरेजी प्रशासन के अधीन था, जहां इंदौर रेजीडेंट के आदेशों का पालन होता था। जब संपूर्ण भारत में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अंगरेज विरोधी मुहिम चला रही थी और उधर महात्मा गांधी के नेतृत्व में राष्ट्रीय आंदोलन तेज होता जा रहा था, तब इंदौर में भी अंगरेज विरोध का स्वर मुखरित हुआ। यह एक उल्लेखनीय तथ्य है कि गांधीजी जब 30 मार्च 1918 को इंदौर पधारे तो उनकी इस यात्रा से नगर के राष्ट्रवादियों को बड़ा नैतिक बल मिला।
 
उक्त पृष्ठभूमि में, इंदौर में 1921 में, इंदौर के राजनैतिक कार्यकर्ताओं ने मिलकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की शाखा की स्थापना की। रेसीडेंसी के छावनी क्षेत्र में स्थापित इस पार्टी का प्रथम अध्यक्ष श्री अर्जुनलाल सेठी को बनाया गया। उसी वर्ष नगर में 'इंदौर राज्य प्रजा परिषद्‌' की भी स्थापना हुई। इस परिषद्‌ ने प्रस्ताव पारित कर तत्कालीन होलकर नरेश, महाराजा तुकोजीराव (तृतीय) से मांग की कि राज्य में उत्तरदायी शासन लागू किया जाए।
 
राजशाही के विरुद्ध उठी इस प्रजातांत्रिक मांग को राज्य द्वारा बुरी तरह दबा दिया गया और इतने कठोर आदेश जारी किए गए कि'इंदौर राज्य प्रजा परिषद्‌' के अस्तित्व को ही खतरा उत्पन्न हो गया। इन दमनकारी उपायों के बावजूद कांग्रेस व प्रजा मंडल की राष्ट्रवादी गतिविधियां नगर में चलती रहीं। हालांकि इन गतिविधियों का संचालन लुकछिप कर करना होता था। 1936 की बात है जब अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के आह्वान पर अन्य देशी रियासतों के समान इंदौर में भी कांग्रेस ने सदस्यता अभियान चलाया। लगभग उन्हीं दिनों 'प्रजामंडल' ने भी सदस्यता अभियान चलाया किंतु दोनों संगठनों में कभी टकराव की स्थिति नहीं बनी।
 
देश की आजादी के बाद जब देशी राज्यों का विलय भारतीय संघ में हो गया और मध्यभारत का निर्माण हुआ तो 'प्रजामंडल' के आंदोलन का लक्ष्य भी पूर्ण हो गया। 1948 में 'प्रजामंडल' को कांग्रेस की प्रादेशिक तदर्थ कमेटी में परिवर्तित कर दिया गया और तब से कांग्रेस, नगर की प्रमुख राजनैतिक पार्टी बन गई।
 
इंदौर श्रमिक संगठन व आंदोलन
 
इंदौर नगर की औद्योगिक प्रगति की नींव रखने का श्रेय महाराजा तुकोजीराव (द्वितीय) होलकर को है। उनके शासनकाल के उत्तरार्द्ध में (186086) में नगर में कारखानों की स्थापना होना प्रारंभ हो चुकी थी। नगर में कपड़ा मिलों की स्थापना ने भी सैकड़ों श्रमिकों को रोजगार दिया। एकसाथ कार्य करने व समान हितों की रक्षा के लिए श्रमिकों में संगठनात्मक भावना जागृत होने लगी थी।
 
देश में 1926 में भारतीय ट्रेड यूनियन अधिनियम बना और यह संयोग की बात है कि उसी वर्ष इंदौर में भी श्रमिकों ने, विशेषकर कपड़ा मिलों के श्रमिकों ने अपना एक संगठन बनाया और मध्य जुलाई से वे हड़ताल पर चले गए। इंदौर में श्रमिकों की यह प्रथम संगठित हड़ताल थी। बोनस तथा कार्यावधि के मुद्दों को लेकर लगभग 1300 श्रमिकों ने 2 माह तक हड़ताल जारी रखी। अंतत: मिल मालिकों ने बोनस की बात स्वीकारी और 84 घंटे प्रति सप्ताह के स्थान पर 60 घंटे प्रति सप्ताह कार्यावधि तय की गई।
 
1927 में इंदौर में विधिवत ट्रेड यूनियन कायम हुई और इसे स्थापित करवाने में अहमदाबाद के यूनियन सचिव ने सहायता की। उल्लेखनीय है कि अहमदाबाद भी उस समय तक वस्त्र उद्योग का महत्वपूर्ण केंद्र बन चुका था। दोनों औद्योगिक नगरों के श्रमिकों के मध्य स्थापित यह संपर्क काफी लाभदायक सिद्ध हुआ।
 
इंदौर के श्रमिकों ने अपनी पहली हड़ताल की सफलता को आदर्श मानकर, बोनस, मजदूरी वृद्धि व अन्य मांगों को लेकर लगभग प्रतिवर्ष हड़ताल की परंपरासी बना ली। 1927 से 1933 तक यह सिलसिला प्रतिवर्ष चला। इस प्रवृत्ति के कारण नगर का औद्योगिक वातावरण दूषित होने लगा और उत्पादन पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए होलकर सरकार ने 1933 में 'इंदौर ट्रेड डिस्प्यूट एक्ट' पास किया। इसके बाद मालिकमजदूरों के मध्य विवाद तो निरंतर उठते रहे, लेकिन प्राय: दोनों पक्षों ने होलकर राज्य के प्रधानमंत्री की मध्यस्थता को स्वीकारा और उनके द्वारा प्रदत्त निर्णयों को माना।
 
श्रमिक दिवस के अवसर पर 1 मई 1939 को इंदौर में साम्यवादी विचारधारा के पोषक संगठन इंदौर मिल मजदूर सभा की स्थापना हुई। श्रमिकों की समस्याओं को सुलझाने के लिए होलकर सरकार ने 1940 में एक लेबर ऑफिसर की नियुक्ति की।
 
1939 में योरपीय मुल्कों के मध्य द्वितीय विश्वयुद्ध प्रारंभ हो गया, जिसमें ब्रिटेन की सक्रिय भागीदारी थी। ब्रिटेन के उपनिवेश के रूप में भारत भी युद्ध से प्रभावित हुआ। सारे मुल्क में मूल्य वृद्धि हुई और तमाम आवश्यक वस्तुओं का अभाव निर्मित हो गया। इस महंगाई ने इंदौर के आम लोगों व विशेषकर श्रमिकों को भी प्रभावित किया।
 
उत्तरोत्तर बढ़ती महंगाई से त्रस्त श्रमिकोंने मजदूरी बढ़ाने की मांग पर हड़ताल कर दी। अंतत: सरकार ने सभी श्रमिकों को साढ़े बारह प्र.श. महंगाई भत्ता स्वीकृत किया। संभवत: यहीं से महंगाई बढ़ने के साथ महंगाई भत्ता बढ़ाने की व्यवस्था शुरू हुई।
 
इंदौर के मिल मजदूरों की बारबार होने वाली हड़तालों ने महात्मा गांधी को भी विचलित कर दिया था। गांधीजी ने इंदौर की समस्याओं को सुनने, सुलझाने व आवश्यकता पड़ने पर नया श्रमिक संगठन गठित करने के उद्देश्य से श्री गुलजारीलालजी नंदा को इंदौर भेजा। अहमदाबाद की मजदूर महाजन सभा की भांति 1941 में इंदौर में भी नंदाजी की प्रेरणा से 'इंदौर मिल मजदूर संघ' की स्थापना हुई।
 
गांधीनंदा के इस प्रयास का इंदौर के श्रमिकों पर अच्छा प्रभाव पड़ा। जब 1942 में 'भारत छोड़ो आंदोलन' चलाया गया तो देश के अनेक ख्यातिनाम आंदोलनकारी नेताओं को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। इन गिरफ्तारियों के विरुद्ध इंदौर के श्रमिकों ने अभूतपूर्व राष्ट्रीय भावना का परिचय देते हुए हड़ताल कर दी। यह हड़ताल 3 सप्ताह तक चलती रही और नगर में जगहजगह श्रमिक समूहों ने गिरफ्तार नेताओं की रिहाई की मांग की।
 
इंदौर में अनेक राजनैतिक दलों की स्थापना
 
इंदौर नगर में 1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की शाखा की स्थापना के बाद विभिन्न राजनैतिक दलों की स्थापना का सिलसिला प्रारंभ हुआ।
 
1923 में हिन्दू महासभा की स्थापना हुई जो प्रारंभ में एक राजनैतिक दल न होकर सामाजिक संगठन के स्वरूप में था। धीरेधीरे इसमें राजनैतिक गतिविधियों ने प्रवेश किया और 1944 में पहली बार इस दल ने इंदौर लेजिस्लेटिव असेम्बली का चुनाव ल़ड़ा, जिसमें उसे सफलता नहीं मिली। 195152 में इस दल ने तीन विधानसभा क्षेत्रों में अपने प्रत्याशी खड़े किए किंतु तीनों हार गए और उन्हें मत भी बहुत कम प्राप्त हुए, जो इस दल की स्थिति को दर्शाते हैं। 1957 में इस दल ने कोई प्रत्याशी खड़ा नहीं किया। 1962 के चुनावों में इंदौर लोकसभा के लिए इस दल के प्रत्याशी को कुल 7014 वोट ही मिले, जो कुल मतदान का 3 प्रतिशत के करीब था। उसी वर्ष 4 प्रत्याशी विधानसभा चुनाव भी लड़े लेकिन सभी पराजित हो गए। 1967 के चुनाव में भी इस दल को कोई सफलता नहीं मिली। नगर में इस दल का अस्तित्व नगण्य ही रहा।
 
1936 में ही इंदौर नगर में एक समूह सक्रिय हुआ, जिसने राजनैतिक समाजवाद व ट्रेड यूनियन के क्षेत्र में कार्य प्रारंभ किए व अपने को मार्क्सिस्टग्रुप संबोधित किया। बाद में 1942 में यह ग्रुप भारतीय साम्यवादी दल से सम्बद्ध हो गया। इंदौर के औद्योगिक स्वरूप को देखते हुए साम्यवादियों ने अपने लिए यहां उज्ज्वल संभावनाएं खोजी थीं किंतु 195152 तक भी यह दल नगर के श्रमिकों में अपनी मजबूत पकड़ नहीं बना पाया था। संभवत: इसीलिए 5152 के आम चुनावों में इस दल का कोई प्रत्याशी लोकसभा के लिए नहीं खड़ा हुआ। 5 विधानसभा क्षेत्रों से जरूर इसके उम्मीदवार खड़े हुए और पांचों ही पराजित हो गए। इस परिणाम के बाद 1957, 1962 व 1967 में हुए आम चुनावों में इस पार्टी ने कोई उम्मीदवार खड़ा ही नहीं किया।
 
नगर में सोशलिस्ट पार्टी की शाखा 1946 में स्थापित हुई और प्रारंभिक तौर पर यह दल कांग्रेस के एक अंग के रूप में कार्य करता रहा। आजादी के बाद इस दल ने 1948 में पृथक दल का आकार लिया और भारतीय समाजवादी दल से सम्बद्ध हो गया। 195152 के चुनाव में इस दल ने इंदौर लोकसभा के लिए प्रत्याशी खड़ा किया, जिसे 22,159 मत ही मिले (12.39 प्र.श.) और हार गया। विधानसभा की 6 सीटों पर भी इस दल के प्रत्याशी हारे।
 
पराजय के बाद इस दल ने किसान मजदूर प्रजा पार्टी के साथ मिलकर 'प्रजा सोशलिस्ट पार्टी' गठित की।इस गठबंधन के बाद 1957 के आम चुनाव में इस पार्टी ने अपना कोई प्रत्याशी लोकसभा व विधानसभा के लिए खड़ा ही नहीं किया। इस चुनाव के बाद सोशलिस्ट पार्टी उक्त गठबंधन से पृथक हो गई।
 
1962 में इस दल ने इंदौर लोकसभा के लिए अपना उम्मीदवार खड़ा किया, जिसे 17538 वोट ही मिले। प्रथम आम चुनाव की अपेक्षा 5 प्र.श. जनाधार इस दल ने खो दिया। 1962 के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने 6 विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव लड़ा, जिनमें से एक देपालपुर सीट पर इसका प्रत्याशी विजयी रहा।
 
चौथे आम चुनावों में इस दल का जनाधार बढ़ा और 1967 के परिणामों के अनुसार इंदौर विधानसभा क्षेत्र 1 व 3 से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार विजयी हुए। इन क्षेत्रों के पार्टी उम्मीदवारों को क्रमश: 15748 तथा 16954 मत मिले। देपालपुर क्षेत्र से यद्यपि इस दल के उम्मीदवार को 16834 मत मिले थे, फिर भी वह चुनाव हार गया था।
 
प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने 1957 तथा 1962 के आम चुनावों में कोई प्रत्याशी खड़ा नहीं किया। बाद के चुनावों में भी इस दल ने चुनाव तो लड़े, लेकिन एक बार भी सफलता नहीं पाई।
 
रिपब्लिक पार्टी की शाखा 1957 में इंदौर में स्थापित हुई जिसमें इंदौर हरिजन संघ के सदस्योंने सक्रिय भागीदारी की, लेकिन इस दल ने भी नगर में कोई चुनाव नहीं जीता।
 
1950 में नगर में राम राज्य परिषद का जन्म हुआ। प्रथम आम चुनाव में इस दल ने एक विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा व पराजित हुई। यही इस दल का पहला व अंतिम चुनाव सिद्ध हुआ।
 
नवंबर 1951 में इंदौर में भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई। प्रथम आम चुनाव में ही इस दल ने लोकसभा के लिए अपना उम्मीदवार खड़ा किया। यद्यपि वह पराजित हुआ किंतु उसे 46989 मत प्राप्त हुए, जो कुल मतदान का 26.28 प्रतिशत था।
 
विधानसभा के लिए इस दल ने 4 प्रत्याशी खड़े किए, यद्यपि वे चारों हार गए तथापि इंदौर नगर के विधानसभा क्षेत्रों में इस दल के प्रत्याशियों को औसतन 18 प्र.श. वोट हासिल हुए, जो इस पार्टी की सक्रियता को दर्शाता है।
 
1957 के लोकसभा चुनाव में इस पार्टी का प्रत्याशी हारा और उसका जनाधार पूर्व निर्वाचन की अपेक्षा घट गया। उसे 25.64 प्र.श. मत ही हासिल हो पाए।
 
विधानसभा के लिए इंदौर नगर से 3 व 1 महू से प्रत्याशी खड़ा किया गया। इन सभी स्थानों पर पार्टी पराजित हुई। जहां तक इंदौर नगर में प्राप्त मतों का प्रश्न है पार्टी को कोई विशेष लाभ नहीं मिला। औसतन 26.33 प्र.श. मत इसके प्रत्याशियों को मिले थे।
 
1962 के लोकसभा निर्वाचन में जनसंघ के प्रत्याशी को प्राप्त वोटों में भारी गिरावट आई। वह केवल 8.68 प्र.श. मत ही प्राप्त कर पाया। उस वर्ष इंदौर नगर से एक ही विधानसभा क्षेत्र, इंदौर मध्य से पार्टी ने उम्मीदवार खड़ा किया जो हार गया। शेष महू, देपालपुर व सांवेर सुरक्षित सीट पर भी पार्टी प्रत्याशी हार गए।
 
1967 के चौथे आम चुनावों में जनसंघ ने पुन: अपना उम्मीदवार इंदौर लोकसभा के लिए खड़ा किया। पिछली निराशाजनक पराजय की अपेक्षा इस दल ने अपनी स्थिति बेहतर की। दल के प्रत्याशी को इस चुनाव में 67557 वोट मिले, जो पिछले चुनाव (1962) में प्राप्त मतों से 47634 अधिक थे। मतों में इजाफा होने के बावजूद जनसंघ का प्रत्याशी कांग्रेसी प्रत्याशी से हार गया।
 
विधानसभा के सभी 7 स्थानों पर जनसंघ ने अपने प्रत्याशी खड़े किए, लेकिन 6 स्थानों पर वे पराजित हुए। केवल सांवेर सुरक्षित सीट पर इस दल का उम्मीदवार विजयी हुआ। भारतीय जनसंघ की इंदौर क्षेत्र से यह पहली विजय थी। उसका विधायक म.प्र. विधानसभा में पहुंचा। इंदौर नगर के चारों विधानसभा क्षेत्रों से जनसंघ के उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था, जिन्हें इस चुनाव में प्राप्त मतों के औसत में विशेष वृद्धि नहीं हुई थी।
 
इंदौरलोकसभा सीट और इसके अंतर्गत आने वाले 7 विधानसभा क्षेत्रों में तुलनात्मक अध्ययन करने पर यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है कि प्रत्येक चुनाव में कांग्रेस का जनाधार धीरेधीरे घट रहा था और कांग्रेस के बाद दूसरी प्रभावशाली पार्टी के रूप में भारतीय जनसंघ का उदय प्रारंभ हो गया था।
 
इंदौर के लगभग आधे मतदाता ही मतदान करते रहे हैं
 
भारतीय संविधान लागू हो जाने के बाद 195152 में पहली बार देश में आम चुनाव हुए। इंदौर लोकसभा के लिए इस क्षेत्र में 3,87,379 मतदाताओं को पहली बार मतदाता सूची में अपना नाम अंकित करवाने का सौभाग्य मिला। इस प्रथम चुनाव में 1,78,654 मतदाताओं ने मतदान किया, जो 46.2 प्र.श. था। इस चुनाव में कांग्रेस के नंदलाल जोशी विजयी रहे। उन्हें 1,09, 586 मत प्राप्त हुए, जो कुल मतदान का 61.2 प्र.श. था।
 
इंदौर लोकसभा क्षेत्र में इस समय 7 विधानसभा क्षेत्र महू, इंदौर नगरए, इंदौरबी, इंदौरसी, इंदौरडी तथा देपालपुर थे। देपालपुर से 2 विधायक चुने जाते थे, एक सामान्य व दूसरा अनुसूचित जाति से। 1961 तक यही व्यवस्था चलती रही किंतु 1961 में एक अधिनियम बनाकर दोहरी विधायक व्यवस्था समाप्त कर दी गई और देपालपुर तथा सांवेर पृथकपृथक विधानसभा क्षेत्र बना दिए गए। उसी वर्ष सांवेर विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति के प्रत्याशियों के लिए आरक्षित भी कर दिया गया।
 
प्रथम आम चुनावों में कांग्रेस ने सभी सात विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव लड़ा। कांग्रेस को उक्त दर्शाए विधानसभा क्षेत्रों में क्रमश: इस प्रकार वोट मिले थे 17480 (69 प्र.श.), 10276 (49 प्र.श.), 13596 (67.8 प्र.श.), 15614 (67.5 प्र.श.), 12722 (58.8 प्र.श.), 16901 (27.6 प्र.श.), 15098 (25.6 प्र.श.)। इन वैध मतों के आधार पर सभी सात क्षेत्रों से कांग्रेसी प्रत्याशी विजयी हुए थे।
 
देश में 1957 में जब दूसरे आम चुनाव हुए तो इंदौर लोकसभा के लिए लगभग 30,000 मतदाता घट गए। इस चुनाव में 3,57,132 मतदाताओं के ही नाम मतदाता सूची में थे। जिनमें से 1,63,844 ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया, जो 45.88 प्र.श. था। कुल मतों में से कांग्रेस के प्रत्याशी को 1,02,589 वोट मिले, जो वैध मतों का 62.61 प्र.श. था। यही प्रत्याशी विजयी भी हुआ।
 
विधानसभा क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या इस प्रकार थी द्विसदस्यीय क्षेत्र देपालपुर 86,905, इंदौर 41,413, इंदौर नगर पूर्व 43,692, इंदौर नगर मध्य 51,261, इंदौर नगर पश्चिम 45,427 तथा महू में 41,030 मतदाता थे।
 
1957 के चुनावों में हुए मतदान की संख्या क्रमश: इस प्रकार थी 46,447 (26.72 प्र.श.), 18,933 (45.72 प्र.श.), 27,605 (63.18 प्र.श.), 26,390 (51.48 प्र.श.), 24,294 (53.48 प्र.श.) तथा 20,167 (49.14 प्र.श.)। आंकड़े दर्शाते हैं कि 1957 में सर्वाधिक मतदान इंदौर पूर्व विधानसभा क्षेत्र में व सबसे कम देपालपुर में हुआ था।
कांग्रेस ने सभी 7 विधानसभा क्षेत्रों के लिए चुनाव लड़ा और 7 में से 6 स्थान पर विजयी रही। इंदौर पूर्व विधानसभा क्षेत्र, जहां सर्वाधिक मतदान हुआ था, से कांग्रेस हार गई। यहां से निर्दलीय उम्मीदवार विजयी हुआ था, जिसे 16,702 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेसी प्रत्याशी को 10,903 मत ही प्राप्त हुए थे।
 
विजयी कांग्रेस प्रत्याशियों को प्राप्त विधानसभा क्षेत्रवार मतों की संख्या (तथा कोष्टक में प्रतिशत) इस प्रकार थी देपालपुर सामान्य सीट 15,136 (32.59), 12,969 (27.92), देपालपुर सुरक्षित सीट, इंदौर 11,439 (60.42), इंदौर शहरपूर्व 10,903 (39.50), इंदौर नगर मध्य 18,388 (69.67), इंदौर नगर पश्चिमी भाग 16,249 (66.90) तथा महू विधानसभा क्षेत्र में 14,562 (72.22)।
 
1962 में भारत के तीसरे आम चुनाव हुए। इस चुनाव में इंदौर लोकसभा के मतदाताओं की संख्या में48,214 का इजाफा हुआ और यह संख्या 4,05,346 हो गई। इस चुनाव में कुल 2,29,546 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया, जो 56.63 प्र.श. था। इस निर्वाचन में इंदौर के मतदाताओं ने कांग्रेसी प्रत्याशी को नकारते हुए स्वतंत्र उम्मीदवार को लोकसभा में अपना प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना था। कांग्रेस के प्रत्याशी को 89,389 वोट मिले थे, जबकि स्वतंत्र उम्मीदवार को 95,682 मत हासिल हुए थे।
 
तीसरे आम चुनाव में मतदाता ने अपना रुख बदलना प्रारंभ कर दिया था और न केवल लोकसभा में कांग्रेसी उम्मीदवार पराजित हुआ था अपितु इंदौर लोकसभा क्षेत्र में पड़ने वाले 7 विधानसभा क्षेत्रों में से देपालपुर सुरक्षित सीट पर भी कांग्रेस को समाजवादी दल के प्रत्याशी के हाथों पराजित होना पड़ा था।
 
1967 में चौथे आम चुनाव हुए। इस चुनाव में इंदौर लोकसभा की सीट पुन: कांग्रेस ने जीत ली। विधानसभा निर्वाचन में कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार सात में से केवल 3 देपालपुर, इंदौर 2 तथा महू की सीट पर विजयी हुए, शेष 4 इंदौर 1, इंदौर 3, इंदौर 4 व सांवेर सुरक्षित सीट पर कांग्रेस को पराजित होना पड़ा।
 
(आंकड़े इंदौर गजेटियर 1971 से प्राप्त)

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