जानिए होली के महत्वपूर्ण प्रतीक

होली और रंग एक-दूसरे के पूरक

Webdunia
ND

प्रतीकों की अपनी एक अलग दुनिया होती है। और हो भी क्यों नहीं, ये बड़े मजेदार होते हैं। किसी भी संदर्भ को प्रदर्शित करने के लिए उपयोग में लाए जाने वाले बिंदु-रूप, छोटे-रूप या लघु-रूप चिह्न को प्रतीक कहते हैं। प्रतीकों से किसी भी संदर्भ को विस्तृत रूप में देखा जा सकता है। आज की तेज-रफ्तार जिंदगी में प्रतीकों का बहुतायत उपयोग होने लगा है।

जैसे पटाखों की बात निकलते ही हमें दीपावली की याद आ जाती है तो हमने पटाखे को दीपावली का प्रतीक मान लिया। इसी प्रकार हर्षोल्लास के पर्व होली के भी कई प्रतीक हैं जिनसे हमें इस त्योहार के होने के अहसास में बढ़ोतरी होती है।

ND
रंग :
होली मुख्यतः रंगों का ही त्योहार है। लाल, गुलाबी, हरा, नीला, पीला आदि कई रंगों की चमक का नाम है होली। या यूं कहिए होली और रंग एक-दूसरे के पूरक हैं। होली का त्योहार हो और रंगों की बात न हो ऐसा हो ही नहीं सकता। होली का सबसे पहला प्रतीक रंग ही है। रंगों के बिना होली अधूरी है। एक-दूसरे को रंग लगाने की होड़ तथा विभिन्न रंगों से पुते चेहरे अनायास ही होली का उल्लास दुगुना कर देते हैं।

ND
गुलाल :
होली के दूसरे प्रतीक का नाम है गुलाल। इस दिन सभी को गुलाल लगाकर खुशी का इजहार किया जाता है। इसके अंतर्गत जहां बड़े-बुजुर्गों को गुलाल का टीका लगाकर उनका आशीर्वाद लिया जाता है, वहीं छोटों तथा बराबरी वालों के पूरे चेहरे पर गुलाल मसलकर हंसी-ठिठोली की जाती है।

भांग व ठंडाई :
होली त्योहार है मस्ती का, उमंग का, उल्लास का। इसका एक प्रतीक भांग व ठंडाई को भी माना गया है क्योंकि हंसी-ठिठोली और मौज-मस्ती करने के लिए आदमी का बेझिझक स्वभाव होना जरूरी है और भांग व ठंडाई के सेवन से आदमी की झिझक मिट जाती है और वह बेझिझक हो अपने को उन्मुक्त वातावरण में ढाल लेता है फिर उसके बाद होती है मस्ती और सिर्फ मस्ती।

प्रह्लाद व होलिका :
ND
पौराणिक कथाओं को देखें तो होली का मुख्य प्रतीक भक्त प्रह्लाद और निर्दयी होलिका ही है। जब भक्त प्रह्लाद अपने क्रूर और निर्दयी पिता हिरण्यकश्यप को भगवान न मानकर प्रभु विष्णु की भक्ति करने लगा तो पिता ने प्रह्लाद को मारने के लिए अपनी बहन होलिका को, जिसे न जलने का वरदान प्राप्त था, आज्ञा दी कि वह प्रह्लाद को लेकर जलती लकड़ियों के ढेर पर बैठ जाए। होलिका ने ऐसा ही किया। मगर ईश्वर चमत्कार ने होलिका को तो जला दिया मगर प्रह्लाद को बचा लिया। तभी से होलिका दहन प्रचलन में है।

पिचकारी और गुब्बारे :
होली पर जब रंगों की बात चलती है तो पहला प्रश्न उठता है उन्हें लगाया कैसे जाए। हम हरएक को तो पकड़-पकड़कर रंग लगा नहीं सकते। ऐसी स्थिति में होली के एक और प्रतीक पिचकारी और गुब्बारों का जन्म हुआ। इनसे हम दूर खड़े व्यक्ति को भी रंगों से सराबोर कर लेते हैं। पानी में रंग घोलो, पिचकारी या गुब्बारों में भरो और दे मारो अपने मनचाहे निशाने पर।

हुड़दंग या गेर :
रंगों के त्योहार का नाम होली है और होली पर हुड़दंग होता ही है क्योंकि उमंग और उल्लास हुड़दंग से ही आता है। कोई चीख रहा है, कोई गा रहा है, कोई किसी को रंग लगाने के लिए उसके पीछे दौड़ रहा है, किसी को कोई जबर्दस्ती रंग के हौज में डुबो रहा है, कोई गप्पे लगा रहा है तो कोई भाँग के नशे में उल्टी-सीधी हरकतें कर औरों का मनोरंजन कर रहा है। ये सब हुड़दंग में ही तो आते हैं।

सोचो! भला ये सब न हो तो होली का मजा आ पाएगा क्या? शायद नहीं। यही हुड़दंग जब सामूहिक रूप धारण करता है तो वह गेर बन जाती है। फिर इसमें रंगों के इस खेल का दायरा बढ़ जाता है। लगभग प्रत्येक गांव, कस्बे, शहर में एक गेर जरूर निकलती है। गेर में सारे गम और दुश्मनी भूलकर लोग गले मिल जाते हैं और खुशियां मनाते हैं।

गुजिया :
ND
होली सिर्फ रंग, मस्ती और हुड़दंग का ही नाम नहीं है, विभिन्न प्रकार की मिठाइयां खाने-खिलाने का नाम भी है। इसमें सबसे पसंदीदा मिठाई को होली का प्रतीक मान लिया गया है और वह है गुजिया। यह कई प्रकार से बनाई जाती है जैसे- मावे की, खोबरे की, गुड़-तिल्ली की आदि। इस दिन गुजिया बनाकर खाने-खिलाने का रिवाज है। इसीलिए इसे भी होली-प्रतीकों में शुमार कर लिया गया है।

टेसू के फूल :
ND
बसंत आते ही मौसम अ ंगड़ाई लेता है। ठंड गुलाबी होते-होते बिदाई की तैयारी में रहती है। आम बौराने लगते हैं। चारों ओर फूल ही फूल खिले रहते हैं और इन फूलों में अधिकता रहती है टेसू के फूलों की। इन फूलों को पलाश, किंशुक या खाखरे भी कहते हैं। पुराने जमाने में टेसू के फूलों का ही रंग बनाकर होली पर इसका प्रयोग किया जाता था।

जब आदमी तिथि भूल जाए, उसे कैलेंडर उपलब्ध न हो तो वह सिर्फ टेसू के फूल देखकर कह सकता है कि अब होली का त्योहार आ गया।

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Guru Nanak Jayanti 2024: कब है गुरु नानक जयंती? जानें कैसे मनाएं प्रकाश पर्व

Dev diwali 2024: कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली रहती है या कि देव उठनी एकादशी पर?

शमी के वृक्ष की पूजा करने के हैं 7 चमत्कारी फायदे, जानकर चौंक जाएंगे

Kartik Purnima 2024: कार्तिक मास पूर्णिमा का पुराणों में क्या है महत्व, स्नान से मिलते हैं 5 फायदे

Dev Diwali 2024: देव दिवाली पर यदि कर लिए ये 10 काम तो पूरा वर्ष रहेगा शुभ

सभी देखें

धर्म संसार

1000 साल से भी ज़्यादा समय से बिना नींव के शान से खड़ा है तमिलनाडु में स्थित बृहदेश्वर मंदिर

क्या एलियंस ने बनाया था एलोरा का कैलाशनाथ मंदिर? जानिए क्या है कैलाश मंदिर का रहस्य

December Month Festival Calendar : दिसंबर पर्व एवं त्योहार 2024

Dev Diwali 2024: प्रदोष काल देव दीपावली मुहूर्त और मणिकर्णिका घाट पर स्नान का समय एवं शिव पूजा विधि

Mokshada ekadashi 2024: मोक्षदा एकादशी कब है, क्या है श्रीकृष्‍ण पूजा का शुभ मुहूर्त?