फिल्मों में होली के रंग

Webdunia
- सुनील मिश्र

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फिल्मों में होली के प्रसंग जीवन के रंगों को सुर्ख करते हैं और अनजाने में अनेक संदेशे दे जाते हैं। हिंदी सिनेमा में तीज-त्योहारों और रिवाजों को लेकर न जाने कितनी बार कितनी सारी आत्मीय भावनाएँ अभिव्यक्त की गई हैं। होली भी ऐसा ही त्योहार है, जिसने हिंदी सिनेमा को रसों और रंगों से सराबोर किया है। फिल्मों में और फिल्मों के बाहर फिल्मवालों की निजी जिंदगी में इस त्योहार की रोचकताएँ बराबर बनी हुई हैं।

हमारी चेतना में यह बात इस कदर समा चुकी है कि कोई भी विशेष दिन हो तो उस दिन पर केंद्रित फिल्मी गीतों का चयन करो और प्रस्तुत करो। चाहे वह राष्ट्रीय त्योहार हो या पारंपरिक। कहीं न कहीं सिनेमा और उसका गीत-संगीत उसे मनाने में शामिल है।

ऐसा ही होली का भी है। अलग-अलग समय में फागुन नाम की दो फिल्में बनीं। एक फिल्म 'होली आई रे' बनी। एक फिल्म 'होली' बनी। इन फिल्मों में होली को भावनात्मक अनुभवों वाली घटनाओं से जोड़कर कुछ ताने-बाने बुने गए। कुछ फिल्में इनमें से ऐसी भी रहीं, जिनमें यथार्थ के जरूरी प्रश्नों को रेखांकित किया गया। 'फागुन', जिसमें धर्मेन्द्र और वहीदा रहमान की प्रमुख भूमिका थी, उसका तानाबाना होली से ही जोड़ा गया था।
  होली भी ऐसा ही त्योहार है, जिसने हिंदी सिनेमा को रसों और रंगों से सराबोर किया है। फिल्मों में और फिल्मों के बाहर फिल्मवालों की निजी जिंदगी में इस त्योहार की रोचकताएँ बराबर बनी हुई हैं।      


इस फिल्म में होली के त्योहार के दिन रंग के मौके पर रंग डालने पर नायिका अपने नायक पति को उसकी बेकारी की आड़ में प्रताड़ित करती है। नायक चुपचाप घर छोड़कर चला जाता है और पूरा का पूरा पहचानहीन जीवन जीता है। वह पेट काटकर साड़ियाँ ही साड़ियाँ जोड़ता है, मगर एक होली उसके जीवन में दोबारा उसका दिल तोड़ती है, जब कहीं से कोई चिंगारी उसके घर में गिरती है और सारी साड़ियाँ जलकर राख हो जाती हैं।

नायक अपनी जान पर खेलकर किसी तरह एक साड़ी बचाता है। अगले दिन रंग पर्व पर जब उसका नायिका से मिलन होता है तो वह उसे वही साड़ी ओढ़ाता है। यह एक भावपूर्ण फिल्म थी, जो शब्दों की मर्यादा के प्रति तो सचेत करती थी, स्वाभिमान को ठेस पहुँचाने की जीवनपर्यंत सजा का भी मार्मिक दस्तावेज साबित होती थी। 'पिया संग खेलो होरी, फागुन आयो रे' इस फिल्म का अनूठा गीत है।

राजकुमार संतोषी की फिल्म 'दामिनी' में होली के त्योहार में कुत्सित इरादों के युवा एक भयावह घटना को अंजाम देते हैं। अराजक मस्ती में रंगे ये युवा अपने ही घर की नौकरानी से बलात्कार करते हैं, जिसकी लड़ाई उसी घर की बहू को अपनी जान पर खेलकर लड़नी पड़ती है। इस फिल्म में यह त्योहार और इस त्योहार के रंग अराजक हो रही युवा पीढ़ी को न सिर्फ सतर्क करते हैं, बल्कि चेतावनी भी देते हैं।

पुराने फिल्मों के होली के कुछ खास गीत -

' मदर इंडिया' का 'होली आई रे'।
' फागुन' का 'पिया संग खेलो होरी व फागुन आयो रे'
' कटी पतंग' का 'आज न छोड़ेंगे'।
' जख्मी' फिल्म का 'आई-आई रे होली' ।
' नवरंग' का 'आया होली का त्योहार'।
' कोहिनूर' का 'तन रंग लो ली आज मन रंग लो।'
' आपकी कसम' का 'जय-जय शिवशंकर'।
' आखिर क्यों' का 'सात रंग में खेल रही है।'
' शोले' का 'होली के दिन दिल खिल जाते हैं।'
' सिलसिला' फिल्म का 'रंग बरसे भीगे चुनरवाली रंग बरसे' ।

फिल्म 'मदर इंडिया' के गीत में अनुराग और खुशियों के कितने अहसास दिखाई पड़ते हैं। 'जख्मी' का नायक गीत गाते हुए बेहद विचलित नजर आता है, तभी वह कहता है, 'दिल में होली जल रही है।' 'कोहिनूर' के गाने में प्रेम में डूबने और प्रेम को बाँटने की कल्पना की गई है। 'सिलसिला' फिल्म के गीत में शरारत और शोखियों का दिलचस्प तालमेल है। यह गीत परदे पर अच्छा लगता है, क्योंकि अमिताभ और रेखा पर फिल्माया गया है।

' शोले' फिल्म का गीत 'होली के दिन दिल खिल जाते हैं, रंगों में रंग मिल जाते हैं' में एक अलग ही सा रूमानीपन है।

यह त्योहार प्रेम और सद्भाव के संदेश का है। रचनात्मक माध्यमों ने इस त्योहार को अपने उपक्रमों में बड़ी कल्पनाशीलता के साथ प्रस्तुत किया है। यह त्योहार खुशियों का है। इस त्योहार में शामिल विविध रंग न सिर्फ हमारे जीवन के रंगों को सुर्ख करते हैं, बल्कि उनमें खुशबू और भावनाओं को शामिल करते हैं। फिल्मों में इसी कारण होली के प्रसंग, होली के कथानक, होली के दृश्य और होली के गीत यादगार बन जाया करते हैं।

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