देश भर के रंग, होली के संग

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हमारे देश के हर हिस्से, हर कोने में होली का त्योहार उत्साह के साथ मनाई जाती है चाहे वह प्रसिद्ध ब्रज की होली हो या जम्मू कश्मीर की। होली मनाने का तरीका यूं तो सभी जगह लगभग समान होता है परंतु हमारा देश विभिन्नताओं का देश है और इस प्रकार होली में राज्यों की संस्कृति की झलक आना स्वभाविक है। आइए हम आपको बताते हैं पूरे देश में होली मनाने के तरीकों के विषय में। 


 

 
गुजरात : दो दिन चलने वाली के पहले दिन रात्रि में लकड़ियों के इस्तेमाल से आग जलाई जाती है और बहुत सारे लोग इकट्ठे होकर इस आग में कच्चा नारियल और मक्का चढ़ाते हैं। दूसरा दिन धुलेंडी के नाम से मनाया जाता है जिसमें रंगों से खेलने की परंपरा है। इसके विपरीत गुजरात के द्वारका में होली के दिन भगवान श्रीकृष्ण के द्वारकाधीश मंदिर पर एकत्रित होकर मजाक, ठिठोली और संगीत में डूब जाने की परंपरा है। 
 
उत्तर प्रदेश : ब्रज में बरसाना नाम की जगह में लट्ठमार होली खेली जाती है। यह राधा रानी मंदिर पर मनाई जाती हैं, जहां हजारों की संख्या में लोग प्रसिद्ध होली देखने आते हैं जिसमें महिलाएं डंडों से पुरुषों पर प्रहार करतीं हैं और वे स्वयं को ढाल के पीछे सुरक्षित रखती हैं। कानपुर में होली एक हफ्ते तक मनाई जाती है और अंतिम दिन गंगा मेला, जिसे होली मेला भी कहा जाता है, का आयोजन होता है। इस मेले के तार आजादी के प्रयासों से जुडे है। 
 
उत्तराखंड : यहां की कुमाऊंनी होली संगीत से भरपूर होती है। कुमाऊंनी होली बैठी होली, खड़ी होली और महिला होली के रूप में मनाई जाती है। बैठी और खड़ी होली में लोग मधुर, रसीले और धार्मिक गीत गाते हैं और भारतीय संगीत के रागों का इसमें खास महत्व होता है। कुमोन नाम की जगह में पंद्रह दिन पहले लकड़ियों के ढेर को जलाया जाता है, जिसे चीर कहते हैं और इस प्रकिया को चीर बंधन कहते हैं। लकड़ी के ढेर के बीच में हरे रंग की एक खास पेड़ की शाखा लगाई जाती है। हर मोहल्ले की चीर की गहन सुरक्षा की जाती है ताकि अन्य किसी मोहल्ले के लोग उसे चुरा न सकें और इसे चुराने के अनगिनत प्रयासों को सफल न होने देना का मजा ही अलग है। 

 

बिहार : यहां लकड़ी के साथ-साथ गोबर के कंडों के इस्तेमाल से होली जलाई जाती है। इस आग में नई फसल के दानों को चढ़ाने की खास परंपरा है। अगले दिन रंगों से खेलकर होली मनाई जाती है जिसमें लोग टोली बनाकर घर घर जाकर रंग लगाते हैं। इसका एक खास उद्देश्य सभी से मिलना भी होता है। 


 
बंगाल : होली को यहां 'डोल ज़ात्रा' या 'डोल पूर्णिमा' के नाम से जाना जाता है। यहां भगवान श्रीकृष्ण और राधा की मूर्तियों को एक पटिए पर बिठाकर घुमाया जाता है। डोल पूर्णिमा के दिन बच्चे नारंगी या सफेद रंग के कपड़े पहनते है और फूलों की माला से श्रृंगार करते हैं। बच्चों की टोली एकतारा, डुबरी या वीना हाथ में लिए नाचती गाती घरों के सामने से गुजरती है। परिवार के मुख्य सदस्यों द्वारा व्रत रखा जाता है और भगवान श्रीकृष्ण और अग्निदेव की पूजा की जाती है। 
 
आसाम : होली को फाकुआ नाम से जाना जाता है और बंगाल की 'डोल जात्रा' की तरह इसे मनाया जाता है। दो दिन लंबे इस कार्यक्रम में पहले दिन मिट्टी (क्ले) से बनी झोपड़ियों को जलाते हैं। दूसरे दिन लोग एक दूसरे को रंग से सराबोर करते हैं। 
 
गोआ : होली यहां के एक महिने तक चलने वाले शिगमो त्योहार का हिस्सा होती है। यहां पूजा और होलिका दहन के अवसर पर पीला, नारंगी रंग और गुलाल चढा़ए जाते हैं।  
 
कर्नाटक : ग्रामीण इलाकों में बच्चे घरों से पैसे लेकर लकड़ियों का इंतजाम करते हैं और होली के हफ्तों पहले 'कामादहन' की रात में इन लकड़ियों को जलाया जाता है। कर्नाटक के सिरसी में होली एक पारंपरिक नृत्य 'बेदारा वेशा' के साथ मनाई जाती है। यह नृत्य होली के असली दिन से पांच दिन पहले से शुरू कर दिया जाता है और खास बात यह है कि हर साल के बदले हर दूसरे साल यहां त्योहार मनाया जाता है। 
 
तमिलनाडु : यहां होली खास आकाशीय संयोग 'उथीरम' और 'पौर्निमा' के एक साथ होने पर मनाई जाती है और यह कई देवी-देवताओं की शादी की सालगिरह भी होती है। मान्यता के अनुसार इस दिन देवी लक्ष्मी समुद्र मंथन से प्रकट हुईं थीं। होली या वसंतोत्सव पर मंदिरों में खास आयोजन होते हैं जिनमें सजावट, संगीत, नृत्य, प्रवचन और हरिकथाएं शामिल हैं। 

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