होली की प्राचीन परंपराओं को आज भी जीवंत रखा है ब्रज-वृंदावन की अलौकिक होली ने

Webdunia
Tradition of Holi

- सुशील कुमार शर्मा 
 
आज के समय की तथाकथित भौतिकवादी सोच एवं पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव, स्वार्थ एवं संकीर्णताभरे वातावरण से होली की परंपरा में बदलाव आया है। परिस्थितियों के थपेड़ों ने होली की खुशी और मस्ती को प्रभावित भी किया है, लेकिन आज भी बृजभूमि ने होली की प्राचीन परंपराओं को संजोए रखा है। यह परंपरा इतनी जीवंत है कि इसके आकर्षण में देश-विदेश के लाखों पर्यटक ब्रज-वृंदावन की दिव्य होली के दर्शन करने और उसके रंगों में भीगने का आनंद लेने प्रतिवर्ष यहां आते हैं। 
 
होली नई फसलों का त्योहार है, प्रकृति के रंगों में सराबोर होने का त्योहार है। राधा-कृष्ण के जीवनकाल से ही अनुराग के इस त्योहार को ब्रज के गांव-गांव, घर-घर में लोग राग-रंग, मौज-मस्ती, हास-परिहास, गीत-संगीत के साथ परंपरा से आज तक मनाते आ रहे हैं। ब्रज में ऐसा कोई हाथ नहीं होता, जो गुलाल से न भरा हो व पिचकारियों के सुगंध भरे रंग से सराबोर न हो। 
 
मति मारौ श्याम पिचकारी, अब देऊंगी गारी। 
भीजेगी लाल नई अंगिया, चूंदर बिगरैगी न्यारी। 
देखेंगी सास रिसाएगी मोपै, संग की ऐसी है दारी। 
हंसेगी दै-दै तारी। 
 
ब्रज की होली की रसधारा से जुड़ा एक तीर्थ है बरसाना। फागुन शुक्ल नवमी के दिन नंदगांव के हुरिहारे कृष्ण और उनके सखा बनकर राधा के गांव बरसाने जाते हैं। बरसाने की ललनाएं राधा और उसकी सखियों के धर्म का पालन कर नंदगांव के छैल छकनिया हुरिहारिरों पर रंग की बौछार करती हैं।
 
फाग खेलन बरसाने आए हैं नटवर नंद किशोर
घेर लई सब गली रंगीली। 
छाय रही छवि घटा रंगीली। 
ढप-ढोल मृदंग बजाए है। 
बंशी की घनघोर। 
 
बुंदेली फागों के एकछत्र सम्राट हैं लोककवि ईसुरी। ईसुरी ने अपनी प्रेमिका 'रजउ' को अपने कृतित्व में अमर कर दिया। ईसुरी ने फागों की एक विशिष्ट शैली 'चौघड़िया फाग' को जन्म दिया। हम अपनी फाग चर्चा चौघड़िया फागों से ही आरंभ करते हैं। ईसुरी ने अपनी प्राकृत प्रतिभा से ग्रामीण मानव मन के उच्छ्वासों को सुर-ताल के साथ समन्वित कर उपेक्षित और अनचीन्ही लोक भावनाओं को इन फागों में पिरोया है। 
 
हमखां बिसरत नहीं बिसारी, हेरन-हंसन तुमारी। 
जुबन विशाल चाल मतवारी, पतरी कमर इकारी। 
भौंह कमान बान से तानें, नजर तिरीछी मारी। 
'ईसुर' कान हमारी कोदी, तनक हरे लो प्यारी। 
 
मूलत: होली का त्योहार प्रकृति का पर्व है। इस पर्व को भक्ति और भावना से इसीलिए जोड़ा जाता है ताकि प्रकृति के इस रूप से आदमी जुड़े और उसकी अमूल्य धरोहरों को समझे जिनसे ही आदमी का जीवन है। मनुष्य का जीवन अनेक कष्टों और विपदाओं से भरा हुआ है। वह दिन-रात अपने जीवन की पीड़ा का समाधान ढूंढने में जुटा रहता है। इसी आशा और निराशा के क्षणों में उसका मन व्याकुल बना रहता है। ऐसे ही क्षणों में होली जैसे पर्व उसके जीवन में आशा का संचार करते हैं। 
 
भारत के बढ़ते जल संकट के मद्देनजर हमें पानी बचाने के लिए एकसाथ मिलकर काम करना चाहिए और होली जैसे अवसर पर पानी की बर्बादी रोकना चाहिए। होली खेलने वालों ने अगर प्राकृतिक रंग या गुलाल से होली खेली तो कुल 36 लाख 95 हजार 518 लीटर पानी की बचत होगी। धरती पर लगभग 6 अरब की आबादी में से 1 अरब लोगों के पास पीने को भी पानी नहीं है।

जब मनुष्य इतनी बड़ी आपदा से जूझ रहा हो तो ऐसे में हमें अपने त्योहारों को मनाते वक्त संवेदनशीलता दिखानी चाहिए। इस होली पर जितना संभव हो, अधिक से अधिक पानी बचाने का संकल्प लें। सभी को प्यार के रंग में रंग देने वाले होली के त्योहार पर हर व्यक्ति अपने और दूसरों के जीवन में खुशियों के रंग भर देना चाहता है।
 
कोई अबीर-गुलाल से तो कोई पक्के रंग और पानी से होली खेलता है, लेकिन आज भी कुछ लोग हैं, जो प्रकृति से प्राप्त फूल-पत्तियों व जड़ी-बूटियों से रंग बनाकर होली खेलते हैं। उनके अनुसार इन रंगों में सात्विकता होती है और ये किसी भी तरह से हानिकारक नहीं होते। होली के अवसर पर छेड़खानी, मारपीट, मादक पदार्थों का सेवन, उच्छृंखलता आदि के जरिए शालीनता की हदों को पार कर दिया जाता है। यह अनुचित है। 
 
होली का पर्व भेदभाव को भूलने का संदेश देता है, साथ ही यह मानवीय संबंधों में समरसता का विकास करता है। आवश्यकता है कि होली के वास्तविक उद्देश्य को आत्मसात किया जाए और उसी के आधार पर इसे मनाया जाए। 

ALSO READ: ब्रज की होली : विश्वभर में मशहूर है बरसाना की लठमार होली, ऐसा मनता है यहां होली का त्योहार

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Merry Christmas 2024: क्रिसमस ट्री का रोचक इतिहास, जानें कैसे सजाते थे Christmas Tree

भारत में ईसाई धर्म की शुरुआत कब हुई थी?

महाकुंभ, अर्ध कुंभ और पूर्ण कुंभ में क्या है अंतर, जानिए क्यों है इनमें इतना फर्क

क्रिसमस पर ईसा मसीह का जन्मदिन रहता है या नहीं, 25 दिसंबर को चुनने के पीछे का इतिहास क्या है?

मकर संक्रांति, लोहड़ी, पोंगल और उत्तरायण का त्योहार कब रहेगा?

सभी देखें

धर्म संसार

24 दिसंबर 2024 : आपका जन्मदिन

24 दिसंबर 2024, मंगलवार के शुभ मुहूर्त

Lal Kitab Rashifal 2025: वृश्चिक राशि 2025 का लाल किताब के अनुसार राशिफल और उपाय

Lal Kitab Rashifal 2025: तुला राशि 2025 का लाल किताब के अनुसार राशिफल और उपाय

मंगल का कर्क राशि में गोचर, क्या होगा देश-दुनिया पर असर, 5 राशियों को रहना होगा बचकर

अगला लेख