होली पर्व भारत में बहुसांस्कृतिक समाज के जीवंत रंगों का प्रतीक

ब्रह्मानंद राजपूत
होली पर्व भारत में धूमधाम और हर्षोल्लास से मनाया जाने वाला प्राचीन पर्व है। होली पर्व हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुल महीने के शुक्ल पक्ष के अंतिम दिन पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली पर्व भारत में परंपरागत रूप से 2 दिन मनाया जाता है। पहले दिन फाल्गुन मास की पूर्णिमा को पूजा की होली मनाई जाती है। इस दिन होलिकादहन होता है। इस दिन गोबर के उपलों या लकड़ियों से भारत में जगह-जगह होली रखी जाती है।

सभी लोग प्राचीन परंपराओं के अनुसार होली को पूजते हैं और रात में होलिकादहन होता है। जलती हुई होली के चारों ओर लोग परिक्रमा करते हैं तथा अपने और अपनों के लिए मनौतियां मांगते हैं। उत्तर भारत में होलिकादहन के दिन जलती हुई होली में गेहूं की बाली को भूनकर खाने की परंपरा है।

 
होली के दूसरे दिन चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को धुलेंडी यानी कि खेलने वाली होली मनाई जाती है। धुलेंडी के दिन लोग एक-दूसरे को सुबह उठकर गुलाल लगाने जाते हैं। इस दिन छोटे अपने बड़ों से गुलाल लगाकर आशीर्वाद लेते हैं। इस दिन लोग एक-दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि फेंकते हैं और पारंपरिक रूप से होली मनाते हैं। इस दिन घर-घर जाकर लोगों को रंग लगाया जाता है।
 
धुलेंडी के दिन भारत देश के गली-मोहल्लों में ढोल बजाकर होली के गीत गाए जाते हैं और नाच-कूद किए जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि होली के दिन लोग अपने गले-शिकवे और आपसी कटुता भूलकर एक-दूसरे से गले मिलते हैं और पुन: दोस्त बन जाते हैं। रंगों से होली खेलने और नाचने-गाने का दौर दोपहर तक चलता है। इसके बाद लोग नहा-धोकर थोड़ा विश्राम करने के पश्चात नए कपड़े पहनकर सांझ में एक-दूसरे के घर मिलने जाते हैं। लोग अपनी कटुता भुलाकर गले मिलते हैं और एक-दूसरे को होली पर पारंपरिक रूप से बनाई जाने वाली गुजिया और अन्य मिठाइयां खिलाते हैं। 
 
अगर ब्रज की बात की जाए तो ब्रज में होली पर्व की शुरुआत वसंत पंचमी के दिन से ही हो जाती है। वसंत पंचमी के दिन ब्रज के सभी मंदिरों और चौक-चौराहों पर होलिकादहन के स्थान पर होली का प्रतीक एक लकड़ी का टुकड़ा गाड़ दिया जाता है और लगातार 45 दिनों तक ब्रज के सभी प्राचीन मंदिरों में प्रतिदिन होली के प्राचीन गीत गए जाते हैं। ब्रज की महारानी राधाजी के गांव बरसाने में होली से 8 दिन पहले फाल्गुन महीने की शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन लड्डूमार होली से इस प्राचीन पर्व की शुरुआत होती है। इसके बाद फाल्गुन महीने की शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन से लठमार होली की शुरुआत होती है, जो कि होली का त्योहार खत्म होने तक लगातार चलती है।

 
पूरे विश्वभर में मशहूर बरसाना की लठमार होली में (हुरियारिनें) महिलाएं, पुरुषों (हुरियारों) के पीछे अपनी लाठी लेकर भागती हैं और लाठी से मारती हैं। हुरियारे खुद को ढाल से बचाते हैं। इस लठमार होली को दुनियाभर से लोग देखने को आते हैं। यह होली राधारानी के गांव बरसाने और श्रीकृष्णजी के गांव नंदगांव के लोगों के बीच में होती है। बरसाने और नंदगांव के बीच लठमार होली की परंपरा सदियों से चली आ रही है।

 
होली पर्व पूरे देश में परंपरा, हर्षोल्लास और उत्साह के साथ मनाया जाने वाला त्योहार है। होली पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। होली पर्व हमारे देश में उपस्थित बहुसांस्कृतिक समाज के जीवंत रंगों का प्रतीक है। होली पर्व देश में हमारी संस्कृति और सभ्यता के मूल सहिष्णुता और सौहार्द की भावना को बढ़ावा देने वाला पर्व है।
 
इस पर्व को सभी लोगों को शांति, सौहार्द और भाईचारे की भावना से मनाना चाहिए। देश के सभी नागरिकों को इस दिन सांप्रदायिक भावना से ऊपर उठकर अपने गले-शिकवे और कटुता का परित्याग कर बहुलवाद की भावना से अपने आपको रंगना चाहिए जिससे कि देश में शांति, सौहार्द, समृद्धि और खुशहाली कायम हो सके।

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