होलिका दहन का शुभ मुहूर्त

Webdunia
बुधवार, 12 मार्च 2025 (14:32 IST)
Holika Dahan 2025: हिंदू पंचांग अनुसार 13 मार्च 2025 गुरुवार को होलिका दहन होगा। इस बार भद्रा काल रहेगा। भद्रा काल में होलिका दहन करना चाहिए या नहीं। भद्राकाल में कब से कब तक रहेगा? ऐसे में होलिका पूजा और होली दहन का शुभ मुहूर्त क्या है। पूर्णिमा तिथि 13 मार्च 2025 को सुबह 10:35 बजे से प्रारंभ होगी और 14 मार्च 2025 को दोपहर 12:23 बजे समाप्त होगी।
 
होलिका दहन पर भद्रा का विचार: 
1. शास्त्रों के अनुसार भद्रा तीन लोक में विचरण करती है- पाताल लोक, धरती लोक और आकाश लोक। 
2. वर्तमान में 13 मार्च को भद्रा का वास धरती पर रहेगा। 
3. कहते हैं कि जब भद्रा धरती वासा हो तब पर्व त्योहारों पर नियमों का पालन करना चाहिए। 
4. शास्त्र के अनुसार होलिका दहन के दिन भ्रदा के पूंछ काल में पूजा कर सकते हैं और भद्रा की समाप्ति के बाद होलिका दहन कर सकते हैं। 
5. दिल्ली टाइम के अनुसार भद्रा का पूंछ काल शाम को 06:57 से रात्रि 08:14 तक रहेगा और इसका मुख काल रात्रि 08:14 से रात्रि 10:22 तक रहेगा।
6. उपरोक्त मान से शाम को 7:30 से रात्रि 08:00 के बीच होलिका की पूजा कर सकते हैं। यही सही मुहूर्त है।
7. होलिका की पूजा के बाद रात्रि को 10:44 के बाद होलिका दहन का मुहूर्त है। 
8. हालांकि कुछ ज्योतिष कह रहे हैं कि भद्राकाल पूर्णत: मध्यरात्रि 11:26 पर समाप्त होगी इसलिए मध्यरात्रि 11:26 से से 12:30 के बीच होलिका दहन करें।
होलिका दहन की पूरी पूजा विधि- Holika Dahan Puja vidhi:-
1. सबसे पहले होलिका पूजन के लिए पूर्व या उत्तर की ओर अपना मुख करके बैठें।
2. अब अपने आस-पास पानी की बूंदें छिड़कें।
3. गोबर से होलिका और प्रहलाद की प्रतिमाएं बनाएं।
4. थाली में रोली, कच्चा सूत, चावल, फूल, साबुत हल्दी, बताशे, फल और एक कलश पानी रखें।
5. नरसिंह भगवान का स्मरण करते हुए प्रतिमाओं पर रोली, मौली, चावल, बताशे और फूल अर्पित करें।
6. अब सभी सामान लेकर होलिका दहन वाले स्थान पर ले जाएं।
7. अग्नि जलाने से पहले अपना नाम, पिता का नाम और गोत्र का नाम लेते हुए अक्षत (चावल) में उठाएं और भगवान गणेश का स्मरण कर होलिका पर अक्षत अर्पण करें।
8. इसके बाद प्रहलाद का नाम लें और फूल चढ़ाएं।
9. भगवान नरसिंह का नाम लेते हुए पांच अनाज चढ़ाएं।
10. अब दोनों हाथ जोड़कर अक्षत, हल्दी और फूल चढ़ाएं।
11. कच्चा सूत हाथ में लेकर होलिका पर लपेटते हुए परिक्रमा करें।
12. आखिर में गुलाल डालकर चांदी या तांबे के कलश से जल चढ़ाएं।
13. इसके बाद होलिका दहन होता है।

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