हिन्दी कविता : फागुन मदमस्त

अशोक बाबू माहौर
हुड़दंग गलियों में 
उड़ रहे गुलाल 
रंग हरे, पीले, लाल 
ओ री सखी फागुन मदमस्त। 


 
आंखें मलते 
भर-भर लोटा रंग उड़ाते 
हो रहे सराबोर 
ओ री सखी फागुन मदमस्त। 
 
रंग-बिरंगे नर-नारी 
बाल हुए गुलाल 
ओ री सखी फागुन मदमस्त। 
 
धरती रंगीन 
मानो हो रही बौछार 
अनंत रंगों की आज 
ओ री सखी फागुन मदमस्त। 
 
भूल सभी व्यर्थ व्यथाएं 
लग रहे गले 
बांटते प्यार-मोहब्बत साथ 
ओ री सखी फागुन मदमस्त। 
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