घर की डीक्लटरिंग भी है जरूरी

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मम्मीजी ने ब्लैंकेट माँगा, स्टोर रूम में निकालने गई तो किसी में सीलन, किसी का कवर नहीं, कोई बहुत ऊँचे छज्जे पर रखा हुआ... मतलब यह कि 10 ब्लैंकेट होने पर भी समय पर एक भी नहीं मिला और सासू माँ हो गईं नाराज। पतिदेव अलग नाराज, क्योंकि गैस-सिलेंडर आ गया, पर गैस की बुकिंग डायरी शादी के कार्ड्स की भीड़ में जाने कहाँ खो गई।

धुले साफ कपड़े मिलते ही नहीं, बिल जगह पर नहीं होता, जब नाखून काटने हों, नेल कटर मिलता ही नहीं... सब सुविधा होने पर भी कोई चीज समय पर नहीं मिलती और दोष आता है, नेहा के माथे।

शिखा हँसने लगी और बोली- नेहा, तुझे और तेरे परिवार को 'डीक्लटरिंग' की जरूरत है। आजकल देश-विदेश के कई शिक्षा-संस्थानों में इसे एक पाठ्यक्रम के रूप में पढ़ाया जा रहा है। शायद नेहा के ही नहीं, हम सबके परिवारों में इसकी आवश्यकता है। आइए जानें डीक्लटरिंग के कुछ सिद्धांत।

सब हैं जिम्मेदार : घर में सभी को 'डीक्लटरिंग' की आदत डालना चाहिए। जैसे पुराने अखबार, प्लास्टिक आदि जो अटाले वाले को बेचने हैं, वो जिम्मेदारी पतिदेव ले सकते हैं। पुराने कपड़े, जो बाइयों को देने हों, वो सासू माँ को सौंपें। आश्रम में दान करने की जिम्मेदारी ससुरजी ले सकते हैं।

पुराने खिलौने, चादरें बच्चे, चौकीदार के बच्चों को दे सकते हैं। जिम्मेदारी बाँटने से न सिर्फ आप 'रिलेक्स्ड' महसूस करेंगी, बल्कि घर को व्यवस्थित करने में और 'डीक्लटरिंग' में सभी स्वयं को भी भागीदार मानेंगे।

भावनात्मक जुड़ाव : कुछ चीजें हमारे पास ऐसी होती हैं, जिनसे हमारा भावनात्मक जुड़ाव होता है, जैसे शादी का जोड़ा, प्यारी सहेलियों के कार्ड्स, बचपन के फोटो एलबम्स आदि। इन्हें अटाला कतई नहीं माना जा सकता, क्योंकि इन चीजों का स्पर्श भी हमें नई उमंग से भर देता है। अतः इनके ऊपर कोई नियम नहीं, इन्हें सहेजना एक तरह से जीवन सहेजना है।

आदतें बदलें : यदि आपको अनावश्यक सामान खरीदने की आदत है तो उसे बदलें। हमेशा ध्यान रखें कि आपका महत्व आपके सामान से नहीं, बल्कि आपके स्वभाव, आपके कार्यों से है। अनावश्यक भंडारण से जीवन पेचीदा हो जाता है। जिस वक्त किसी चीज को दान करने का विचार आए, उसी समय यह नेक काम कर डालें, क्योंकि वक्त गुजरने के साथ आपका मन भी पलट सकता है। तो, 'डीक्लटरिंग' की आदत अपनाएँ और देखें कि आपका जीवन कितना सुलझा हुआ और आसान लगता है।

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